पथ के साथी

Thursday, June 5, 2014

बूँद -बूँद लम्हें-



समीक्षा
बूँद -बूँद लम्हें-   
सुदर्शन रत्नाकर
       मनसा प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशि  'बूँद बूँद लम्हें' कवयित्री अनिता ललित का पहला काव्य संग्रह है जिसे पढ़ कर सुखद अनुभूति का एहसास हुआ ।वेब साइट एवं पत्र-पत्रिकाओं में कुछ समय से रचनाएँ पढ़ने का अवसर मिलता रहा है ।लेखनी में दम लगता था पूरा संग्रह पढ़ने पर इसकी पुष्टि भी हो गई है
          किसी रचना का वृहदाकार होना या लघु आकार का होना महत्व नहीं रखता महत्त्व होता है पाठकों की संप्रेणीयता का ।वे उसके साथ एकाकार हो पाए हैं या नहीं ।उनके मनमें वह अपनी बात पहुँचा पाया है या नहीं ।जै से प्रकृति में अनेक रंग बिखरे हैं भावाभिव्यक्ति के भी अनेक रूप  हैं,अनेक विधाएँ हैं ।केनवस बड़ा हो तो उसमें अभिव्यक्ति के लिए स्पेस भी बड़ा होता है लेकिन इससे छोटे केनवस के महत्व को कम नहीं आँका जा सकता। विधा कोई भी हो यदि उसमें निहित विचार,संवेदना,भावप्रेषणता दिल में उतरती है और रूह में समा जाती है, जिसका प्रभाव लम्बी अवधि तक रहता है। तो चार पंक्तियाँ भी अभिव्यक्ति के लिए सक्षम होती हैं जो, पाठकों को झकझोर देती हैं ।
         अनिताजी की कविताओं में जीवन की सच्चाई है,बचपन की स्मृतियाँ हैं,रिश्तों की गहराई है,प्रेम की सघन अनुभूति है तो सामाजिक सरोकार भी है।नारी की अस्मिमता के प्रति भी कवयित्री सचेत है ।
          प्रेम जीवन का सत्य है,जिसके अनेक रूप हैं।कवयित्री कभी निश्चल  ,मर्यादित प्रेम की नदी में डुबकी लगाती है तो कभी अवसाद में घिर जाती है ।कहीं उदासी है,कहीं छटपटाहट,बेबसी है ,समर्पण है आत्मसम्मान की भावना है ।प्यार उसके जीवन की धरोहर है जिसे संजो कर रखना चाहती है ।उसकी सोच सकारात्मक है और यही सृजनात्मकता को शाश्वत बनाती है ।
 प्यार के विविध रूपों को उकेरती क्षणिकाएँ-------
      अपने वजूद से मैं
         तुझको तलाशती रह गई
        अब जाकर पता चला
          मेरा वजूद ही मेरा न था ।
          * *
       तुम अगर साथ दो
          तो मैं दुनिया जीत सकती हूँ
          तुमने मुँह मोड़ा
          तो ख़ुद से हार जाती हूँ ।
                    **
          जिस ओर रास्ता न हो
          जिस मंज़िल का क्या करूँ
          जिस छोर मंज़िल न हो
          उस रास्ते का क्या करूँ ।
          * *
          मेरे दिल के ज़ख़्मी गुल बूटे चुभते हैं
          मैँ क्यों कर ओढ़ूँ-- चादर
          तेरी मुस्कानों की।
**
बचपन लौट कर नहीं आता लेकिन उसकी स्मृतियाँ सदैव बनी रहती हैं ।धरोहर के रूप में मन पटल पर विराजमान रहती हैं ।कवयित्री का मन उस बचपन के लिए छटपटाता है ।इस क्षणिका में उसका स्वाभाविक वर्णन है--
        काश लौट आए वो बचपन
           बिन बात हँसना,खिलखिलाना
           हर चोट पे जी भर कर रोना ।
वृहदाकार कविताओं में माँ,पिता,ओ स्त्री कविताएँ मार्मिक एवं भावपूर्ण हैं जिनका सजीव चित्रण किया गया है।हर रचना में गम्भीर अर्थ निहित है ।कवयित्री यूँ ही भटकती नहीं ।
     कुछ कविताएँ नियमों के बंधनों से मुक्त होकर ग़ज़ल,मुक्तक का एहसास कराती हैं ।
भाषा मधुर एवं संयतित है ।प्रतीकों,बिम्बों का सफल प्रयोग किया गया है।
क्षणिका के क्षेत्र में कवयित्री से बहुत सारी आशाएँ हैं।
बूँद -बूँद लम्हे  (काव्य संग्रह) : अनिता ललित,  प्रकाशक :  मनसा         पब्लिकेशन्स,गोमती नगर,लखनऊ;   संस्करण :  2014;  मूल्य 175 रुपये;           पृष्ठ:122

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