1-जल रहा
अलाव- शशि पाधा ( वर्जिनिया, यू एस )
जल रहा अलाव आज
लोग भी होंगे वहीं
मन की पीर–भटकनें
झोंकते होंगे वहीं ।
कहीं कोई सुना रहा
विषाद की व्यथा कथा
कोई काँधे हाथ धर
निभा रहा चिर प्रथा
उलझनों
की गाँठ सब
खोलते
होंगे वहीं ।
गगन में जो चाँद था
कल जरा घट जाएगा
कुछ दिनों की बात है
आएगा, मुस्काएगा
एक
भी तारा दिखे तो
और
भी होंगे वहीं ।
दिवस भर की विषमता
ओढ़ कोई सोता नहीं
अश्रुओं का भार कोई
रात भर ढोता नहीं
पलक
धीर हो बँधा
स्वप्न
भी होंगे वही |
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2-डॉ०पूर्णिमा
राय
1
स्वप्न सलोने मन में लेकर,दिलबर तेरा प्यार लिखा।
यौवन तेरे नाम किया है ,तन-मन का शृंगार लिखा।।
साँसे आती-जाती कहती,इक पल दूर न जाना अब;
मिला सुकूँ इस रुह को तब ही,जब तेरा अधिकार लिखा।।
मन की बस्ती सूनी-सूनी,रंग प्यार के सदा भरो;
हमने प्रेम भाव से इतना ,मनभावन संसार लिखा।।
अरमानों का खून हुआ है,देखी हालत दुनिया की;
मानवता के हित की खातिर ,प्रीत भरा उद्गार लिखा।।
बहकी-बहकी फिज़ा लगे है ,प्रिय की पावन खुश्बू से
मृत काया में होता स्पंदन ,प्राणों का संचार लिखा।।
नारी का सम्मान करें सब,धैर्य बढ़ाएँ उनका जो;
ऐसे पुरुष महान जगत में,उनका ही सत्कार लिखा।
मुख चंदा -सा उज्ज्वल दिखता,कर्म करे सब पुरुषों के;
नारी ताकत के ऊपर ही,कवियों ने हुंकार लिखा।।
सुन्दर नखशिख रूप नारी का,चंचल चितवन मन भाए;
प्रेम, स्नेह की मूरत जननी, नारी का संसार लिखा।।
2
हमसफर के साथ जीवन में बहारें आ रहीं।
मुश्किलों के दौर में दुख की घटाएँ भा रहीं।।
प्यार की पीड़ा सही औ फिर अधूरे जो रहे;
आस में ये प्रीत उनकी जीत नगमें गा
रहीं।।
जिंदगी की भीड़ में साथी मिले जो प्यार दे;
प्यार पाकर प्यार से फिर नफरतें भी जा
रहीं।।
वासना की दौड़ अंधी डस रही रिश्ते सभी ;
पाक मन की भावना नजदीक सबको ला रहीं।
‘पूर्णिमा’ की आरजू ये साथ
जन्मों तक रहे;
गुल नए गुलशन खिले औ' रोशनी चहुँ छा रहीं।।
3
न हिन्दू सिक्ख ईसाई न ही शैतान बनना है।
गिरा कर वैर की दीवार बस इन्सान बनना
है।।
दिखे रोता अगर कोई तो'उसके पोंछ कर आँसू
खुदा के नूर के जैसी हमें मुस्कान बनना
है।।
ख़ुशी रूठी है' जिन लोगों से' उनको हौसला देकर ;
सिसकते आंसुओं
का खो चुका अरमान बनना है।
बहाकर प्रेम की धारा समर्पण के इरादों से
;
दिलों को जीत ले ऐसा हमे सम्मान
बनना है।।
बुराई देखते हैं जो उन्हें भी खुशबुएँ
देकर ;
सजा दे ‘पूर्णिमा’ जो घर वही गुणवान बनना है।।
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