1-ओ मेरी प्यारी गुड़िया- रश्मि विभा त्रिपाठी
दीप एक दुआ का
उजियार रही हूँ
इस दिन के इंतजार में
मैं हर बार रही हूँ
आओ मेरे पास
मैं तुम्हें पुकार रही हूँ
प्रेम से बैठी
कबसे सँवार रही हूँ
तुम्हारे लिए एक तोहफा
तुम्हारे जन्मदिन पर
तुम्हारे लिए है
मेरे आशीष की पुड़िया
रख लो
मुट्ठी में बन्द करके
ओ! मेरी प्यारी गुड़िया
मैं चुपके- से
अपनी उम्र के
दिन- महीने- साल
तुम पर वार रही हूँ
तुम जुग-जुग जियो
अपराजिता रहो
दुनिया की फिक्र छोड़ो
अपनी धुन में बहो
माँ के सपनों को लेके
तुम क्षितिज तक जाओ
पापा की उम्मीदों से
तुम अपना एक आसमान बनाओ
मैं तुम्हारे रास्ते के काँटे
अपने आँचल से बुहार रही हूँ
तुम बिन रुके
चलती रहो अपने लक्ष्य पर
तुम्हें बनाना है
औरों के लिए
एक मील का पत्थर
दोस्त बुरे या भले
कोई खुश हो या जले
तुम न देखो
मैं हर पल
दुआ के दीप से
तुम्हारी नजर उतार रही हूँ
तुम्हारे हाथ में हो
कामयाबी की रोशर्स
तुम्हारे कदमों में हो अर्श
तुम्हारे सामने आई
हर चुनौती को
आगे बढ़कर
मैं ललकार रही हूँ
तुम्हारे सुख के लिए
हर त्याग को तैयार रही हूँ
दीप एक दुआ का
उजियार रही हूँ।
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2-दुआ का पौधा- रश्मि विभा त्रिपाठी
मेरे आगे
तनकर खड़ा था
क्या करती
पाँव छूने को चली
दुख मुझसे बड़ा था
अचानक
उसकी आँखों में
उतर आई खीज बड़ी
पल में टूटी अकड़
भीतर तक जल-भुन गया
और लौटना पड़ा
उसे
मुँह की खाए
अपनी हार से चिड़चिड़ाए
आदमी की तरह
करते हुए बड़-बड़, बड़-बड़
सुनो
उसने देख लिया
कि
तुमने जो रोपा था
द्वार पर
दुआ का पौधा
उसने अब कसकर पकड़ ली है जड़।
3- इस धरती
पर
इस धरती पर
लोग
बेवजह, बिना बात के
बगैर सोचे समझे
लड़ रहे हैं
हाल में हुए युद्ध का
उद्देश्य
मुझे अब मालूम हुआ
जब सब अपने-अपने घरों की ओर
विजयी होकर बढ़ रहे हैं
और मेरे घर की बगल में रहने वाली
एक छोटी- सी बच्ची
संजय- सा
कर रही है गली में वर्णन
विस्मयकारी
धृतराष्ट्र- सी सभी की सोच सारी
सोचा-
लोग मानवता के
कितने अच्छे प्रतिमान गढ़ रहे हैं
जब मैंने
बच्ची को ये बोलते सुना-
दयाराम का कुत्ता
उसके पड़ोसी शांतिस्वरूप पर
अभी कुछ देर पहले ही
भौंक पड़ा था
उसकी बड़ी बेइज्जती हो गई
अब इसी बात पर
दयाराम के ऊपर तड़ातड़ जूते पड़ रहे हैं।
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