काया भंगुर, मृत्यु अटल है
सूर्य कुलश्रेष्ठ
काया भंगुर, मृत्यु अटल है,
जीवन ही संघर्ष पटल है।
कर्म पथ पर जीत न हो,
किंचित भी भयभीत न हो।
अवरोधों से डरना क्या?
समर भूमि में मरना क्या?
साहस रख तू आगे बढ़ ,
कर्मयोगी बन कर तू प्रण।
पुरुषार्थ की ही सिद्धि हो,
तन भले ही मिट्टी हो।
तब श्वासों का कोई मतलब है,
यही मृत्यु पूर्व परमपद है।
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