1-क्षणिकाएँ
सत्या शर्मा 'कीर्ति '
1-ओस
तुम हो मेरे
अनन्त आकाश
और मैं धरा की
कोमल दूब- सी
बरसे तेरा प्यार
मुझपे यूँ
जैसे ओस बूँद हो
वसंत ऋतु- सी
2
ये मोती सी ओस
चन्द क्षणों में
पूरा करके जीवन
समा जाती
धरती की गोद में
तुम हो मेरे
अनन्त आकाश
और मैं धरा की
कोमल दूब- सी
बरसे तेरा प्यार
मुझपे यूँ
जैसे ओस बूँद हो
वसंत ऋतु- सी
2
ये मोती सी ओस
चन्द क्षणों में
पूरा करके जीवन
समा जाती
धरती की गोद में
देने किसी पौधे को
नया जीवन
3हरी घास पर सोई
वो नन्ही-सी ओस
सूरज से
शरमाके
छिप जाती
धरती की गोद में
नया जीवन
3हरी घास पर सोई
वो नन्ही-सी ओस
सूरज से
शरमाके
छिप जाती
धरती की गोद में
और करती है
इंतजार पुनः
रात के आने का
4.
हवाओं के संग
झूमती
दूब की नोक पर
बैठी वो नन्ही-सी ओस
पानी की एक
बूँद नहीं
वो तो
आकाश की आँख से गिरा
आँसू है
जो धरती की याद में हर
रात रोता है।
5..
चाँद ने भेजे थे
चाँदनी के हाथों
जो अनगिनत
सितारे वो
मासूम से
ओस में ढल
धरती की
प्यास बुझा गए ।
-०-
इंतजार पुनः
रात के आने का
4.
हवाओं के संग
झूमती
दूब की नोक पर
बैठी वो नन्ही-सी ओस
पानी की एक
बूँद नहीं
वो तो
आकाश की आँख से गिरा
आँसू है
जो धरती की याद में हर
रात रोता है।
5..
चाँद ने भेजे थे
चाँदनी के हाथों
जो अनगिनत
सितारे वो
मासूम से
ओस में ढल
धरती की
प्यास बुझा गए ।
-०-
2-दोहे
डॉ. सुरंगमा यादव
1
सावन- भादों
बन गए, मेरे प्यासे नैन।
मन पापी
प्यासा फिरे,
तुम बिन
है बेचैन।।
2
आज न
जाने शाम
क्यों, लगती
और उदास।
पल- छिन
भी बीतें
नहीं, साजन
नाहीं पास।।
3
नारी अबला
है नहीं,
ज्ञान बुद्धि
की खान।
रत्न बने
तुलसी यहाँ,
पा रत्ना
से ज्ञान।।
4
आज मनुज को
देखकर, विधना
भी हैरान।
पल-पल
बदले रूप
ये, मुश्किल
है पहचान।।
5
पल में आँखें फेर
लीं,
अपने थे जो खास।
जब तक
सुख की
छाँव
थी, रहे
तभी तक
पास।।
6
जीर्ण पुरातन
त्याग दो,
मधु ऋतु
आयी द्वार।
नव पल्लव,
नव सुमन
से, प्रकृति करे
शृंगार
7
द्वेष घृणा
का हो
गया, आदी
सकल समाज।
दया, प्रेम
बंदी खड़े,
हाथ जोड़
कर आज।।
8
शब्दों पर
बंदिश लगी,
सच पर
कसी लगाम।
अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता, देता
हमें निजाम
।।