अविश्वस्ते न विश्वसेत्
पाकिस्तान पर भरोसा न कर हमें अपनी कार्यनीति व्यावहारिक और सुदृढ़ बनानी चाहिए ।ज़रदारी जी सुबह जो बयान ज़ारी करते हैं ,शाम होने तक उस से मुकर जाते हैं ।वे वहाँ की आम जनता के प्रति ज़वाबदेह न होकर सेना और आइ एस आई के प्रति ज़्यादा ज़वाबदेह हैं ।लगता है आज न सेना उनका हुक़्म मानने को तैयार है और न आई एस आई ।आतंकवादियों का और इस गुप्तचर शाखा का नाखून और मांस का रिश्ता है ।ऐसे हालात में ये इन तीनों में से किसी के भी विरुद्ध नहीं जा सकते ।जिस दिन विरोध में जाएँगे ,उस दिन किसी दूसरे देश में जाकर ठिकाना ढूँढ़ना पड़ेगा;पाकिस्तान का अतीत इसी बात की पुष्टि करता है। ऐसी कौन -सी लोकतान्त्रिक सरकार रही है ,जिसने फ़ौज़ के सामने घुटने न टेके हों ?कोई माँ अपने पोषित बच्चे को मार सकती है क्या?फ़िर हम पाकिस्तान से कैसे उम्मीद लगाए हुए हैं कि वह अपने आतंकी बच्चे को मारे ।क्या पालकर पहलवान इसलिए बनाया था कि भारत के कहने पर उसे मार दे ?पाकिस्तान का फ़ौजी शासक यह काम नहीं कर पाया तो बेचारे ज़रदारी क्या खाकर यह काम करेंगे ?हम भारतवासी इस ग़लतफ़हमी से निकलें और खुद कठोर एवं कूटनीतिक क़दम उठाएँ ।
- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'