1-शीत ऋतु ( कुंडलिया)
1
सीली- सीली रात की,
काँप गई है देह ॥
आज चाँद का साथ ना,
सूना-सूना गेह ।।
सूना-सूना गेह,
सुधाकर कौन छुपाए ।
तारों की सौगात ,
नभ में कौन है लाए ।।
अपनों का ना साथ,
रात की आँखें गीली।
तन की बात है क्या,
निशा तो मन से 'सीली'।।
2
हिमकर हिम की मार से, छुपा रहा है गात ।
रैन धुंध से जूझती,
कैसे ये हालात ।।
कैसे ये हालात
,दुखी है रात सलोनी ।
मुख पर है ना तेज,बनी है सूरत रोनी ।।
बिन चंदा के आज,
रात रोई है
छुपकर ।
"बिन तेरे ना चैन, अभी भी
आजा 'हिमकर'।।"
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2-दोधक छंद (यह 11 वर्ण का छन्द है।[तीन भगण
(211+211+211और दो गुरु 2+2होते हैं)
1
प्रीत हुई मन फागुन छाया ।
भीतर रंग नया खिल आया ।।
माधव माघ रसा छलकाए ।
फागुन प्रीत भरे
सुर गाए ।।
2
काज-सभी तजके
तुम आए।
प्रेम भरे
नग़मे सब गाए।।
लाज भरी अँखियाँ घन भारी।
आज हँसे सखियाँ ,पिय सारी।।
3
होठ हँसे पर
नैन उनीदें ।
लो पढ़ते फिर प्रेम-
क़सीदे
बोल रहे इक
साल हुआ रे।
चार दिनों यह हाल हुआ रे।।
4
माँ ,बहना
करती सब बातें ।
मीत सखी सब खूब सताते।।
क्यों बन माधव
रोज़ रिझाते।
साजन क्यों तुम पीहर आते ?
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3-विद्युल्लेखा /शेषराज छंद(शिल्प:-
[मगण मगण(222 222),दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण )
1
देखो भोली रैना
खोले प्यारे नैना।।
आए चंदा तारे।
चाँदी के ले धारे।।
2
राका की ये काया ।
जैसे काली छाया ।।
चाँदी जैसी लागे ।
यामा रातों जागे ।।
3
मेघों की
है टोली ।
राका धीरे बोली ।।
तारों का है चूड़ा
।
खोलूँ प्यारा जूड़ा।।
4
मेघों के मंजीरे।
बाजे धीरे -धीरे ।।
सारी रैना
गाते।
कैसे प्यारे नाते!!
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