1-मुक्तक
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जला दें नफ़रतों का सब कारोबार होली में ।
आओ भूल जाएँ हम सभी तकरार होली में ॥
भूल हमने की, तुमने की, आओ भूल जाएँ हम ।
यह दो पल का जीवन है, कर
लो प्यार होली में ।
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2-आई रे
होली
कमला निखुर्पा
फागुन संग इतरा के आई है होली
सर र र र चुनरी लहराए
रे होली
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सरसों भी शरमा के झुक झुक जाए
खिलखिला रही वो देखो टेसू की डाली।
फागुन संग इतरा के आई रे होली।
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अमुआ की
डाली पे फुदक-फुदक
कानों में
कुहुक गीत गाए है होली।
इंद्र
धनुष उतरा गगन से धरा पे
सतरंगी
झूले पे झूल रही होली।
फागुन संग
इतरा के आई रे होली।
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खन खन खनकी गोरे हाथों की चूड़ियाँ
पिचकारी में रंग भर लाई रे होली।
अखियाँ अबीर, गाल हुए हैं गुलाल आज
भंग की तरंग संग लाई है होली।
फागुन संग इतरा के आई है होली।
फोटो: कमला निखुर्पा |
गलियाँ चौबारे बने ब्रज – बरसाने
घर से निकल चले कुँवर कन्हाई
ढोलक की थाप सुन गूँजे मृदंग- धुन
संग चली गीतों की धुन अलबेली।
फागुन संग इतरा के आई रे होली।
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इंद्र धनुष उतरा गगन से धरा पे
सतरंगी झूले पे झूल रही होली।
फागुन संग इतरा के आई रे होली।