पथ के साथी

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Thursday, May 30, 2013

ओ पलाश !

पुष्पा मेहरा
सुनो सुनो ओ! पलाश
प्रसन्न देख तुम को बन में
जागी इच्छा मेरे भी मन में
थोड़ा- सा रंग तुम्हारा निखरा
तुम से ही ले लूँ मैं उधार  ।

भर लूँ अपने ह्र्दय के छोर में
भीगूँ जल में,बाँटूँ जग में
परदु:ख में जी भर  मैँ डूबूँ
परसुख को जी भर जी लूँ मैँ

नव शिशु की किलकारी में
ओ! पलाश निश्छल- भाव-रंग घोलूँ
भोले बचपन की  खुशियों में-
 नि:स्वार्थ भाव -रश्मि भर दूँ ।

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Saturday, June 25, 2011

हाइकु-पलाश -फूल



रचना श्रीवास्तव
1

 पलाश -फूल
खिले,घाटियों का

सजा आँगन   



2
रंगे प्रेम में
लालिमा  पलाश की
दोनों ही जून
3
मले हवाएँ
सूरज के गाल पे
टेसू के फूल
4
मौसम बैठे
खटिया, हाथ लिये
पलाश फूल
5
जंगल -आग
है या प्रेम प्रतीक
पलाश फूल
6
धूप छुए जो
पलाश के फूलों को
हो जाये  लाल
7
हवाएँ खेलें
ये गुट्टक पलाश
 के फूलों पर
 


8
टेसू के रंगों
से, सूरज सजाये
माँग रात की ।
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Monday, June 20, 2011

खिल गए फूल पलाश के !



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

निर्जल घाटी के सीने पर
आखर लिख दिये प्यास के ।
जंगल में भी शीश उठाकर
खिल गए फूल पलाश के ।


निर्गन्ध कहकरके ठुकराया
मन की पीर नही जानी 
छीनी किसने सारी खुशबू
बात न इतनी पहचानी
इसकी भी साथी थी खुशबू
दिन थे कभी मधुमास के ।
पाग आग की सिर पर बाँधे
कितना कुछ यह सहता है
तपता है चट्टानों में भी
कभी नहीं कुछ कहता है
सदियाँ बीती पर न बीते
अभागे दिन संन्यास के ।
यह योगी का बाना पहने
बस्ती में ता कैसे ?
कितना दिल में राग रचा है
 सबको बतलाता कैसे ?
धोखा इसने जग से खाया
जल गए   अंकुर आस के ।
इसकी पीड़ा एकाकी थी
सुनता क्या बहरा जंगल
इसके  आँसू दिखते कैसे
मिलता कैसे इसको जल
न बुझी प्यास मिली जो इसको
न बीते दिन  बनवास के ।
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[फोटो:गूगल से साभार]