पथ के साथी

Wednesday, October 21, 2015

राम कथा



ज्योत्स्ना प्रदीप
1
गुरु वशिष्ठ
साक्षात् सदा है ष्ट
पुण्य अभीष्ट ।
2
वो एक छवि
बनाये आदि कवि
साहित्य -रवि ।
3
तुलसीदास
श्रद्धा भक्ति का बनें
मीठा- सा हास ।
4
श्रवण -मन
दशरथ -समय
भूल से बींधे
5
वो एक कोख 
माँ में बसा साकेत
दिव्य आलोक।
6
श्री राम- जन्म
ऋणी हुई  आजन्म
माँ वसुंधरा।
7
ताड़का -भार
मर्यादा पुरुष वे
रें उद्धार !
8
 उर -अल्या
इस ओर अभी तक
राम न आ
9
तेरी छुअन
है कितनी पावन
स्तब्ध गगन !
10
सिय का उर
झंकृत राम -ध्वनि
बाजे नूपुर ।
11
धनुष- भंग
सूर्य- किरण -संग
नवल रंग ।
12
 एक वचन
अनगिन नयन
ने सागर
13
हाय  वो पल
अयोध्या थी तरल 
समय -छल।
14
वन सघन
सिय ,राम ,लखन
भरी उजास ।
15
विदा पिता की
न देख सके राम
अग्नि चिता की ।         
16
झुक सम्मान
पात भरत देते,
प्रसून राम 
17
अनोखा प्यार
पद पादुकाएँ ले
राज्य का भार ।
18
भोली- सी हठ
श्री राम के चरणों
पड़े केवट ।
19
वो स्वर्ण -मृग
भिगो गया नयन 
सौम्य-सुभग ।
20
वो एक रेखा

करके अनदेखा
ये भाग्य -लेखा !
21
वो पर्णकुटी
सूनी  बिन वैदेही  
थी लुटी-लुटी ।
22
वो दम्भी भाल 
पुनीता के अश्रु ने 
लिखा था काल
23
नारी -सम्मान
देह त्यागे गरुड़
खूब प्रणाम  !
24
कमल नेत्र
बने  है नदियों  के
सजल क्षेत्र ।
25
राम- का उर
वैदेही- विरह से
सूना विग्रह ।
26
टूटे है धीर 
रोते  हैं  रघुवीर
जानों तो पीर ।
27
लखन के नीर
संतप्त समय में
हुए अधीर ।
28
एक शबरी
बनी भरी गगरी
बिन राम के ।
29
बेरों में बसी
वो श्रद्धा शबरी की
 सजल हँसीं।
30
हे हनुमंत
श्रीराम से मिले थे
प्रीत अनंत ।
31
तैरे  पत्थर
लिखा थ राम नाम
बड़ा सुन्दर !
32
करुणा बहे
खग विहगों में भी
वो कवि कहें ।
33
भालू ,वानर,
मानव मिलकर
विजय- ओर ।

34
एक शक्ति
स्वयं प्रभु से भी
पुजती रही ।
35
एक वो  सेतु
बनाया था  पुण्य की
विजय हेतु ।
36
लंका -प्रवेश
करते हनुमान-
जय श्री राम
37
है  लंका स्वर्ण
ये  किसके  आँगन
तुलसी -पर्ण  !
38
अशोक- तले
विरह -अगन में
वैदेही जले ।
39
एक तिनका
दुःख में कवच था
हर दिन का ।
40
लो तार -तार
रावण -अहंकार
सिया समक्ष ।
41
संत कपीश
माता जानकी उन्हें
देतीं आशीष ।
 42
महासमर
विभीषण -वानर
हैं राम संग ।
43
था दम्भ ध्वस्त
श्री राम ऋणी तेरा
जग समस्त ।
44
मन -रावण
फूँक कर तो देखो
तभी उत्सव ।
45
पीड़ा है भारी
अग्नि परीक्षाएँ
अब भी जारी ।
46
 दीप मुस्काए
तम का पलायन
श्रीराम आएँ ।
47
हर धाम की
मर्यादा श्री राम की
दीप्त दीप -सी 
48
धोबी का मान !
राम तुम्हें जग की 
है राम -राम ।
49
राम ने किया
आदर्शों से  हवन
स्वाहा इच्छाएँ 
50
ये कैसी विदा
संतप्त  वैदेही  की
न सुनी निन्दा ।
51
किसने छीनी
सुगंध सुमनों की
वो भीनी -भीनी।
52
एक सरयू
हृदय से बही तो
राम पुकारे ।
53
हाँ राम रोते
पर अयोध्यावासी
चैन से सोते ।
54
 सिय के मन
बसे रघुनन्दन
सूना -सा वन ।
 55
प्रणय -मोती
सीप-गर्भ को देते
तम में ज्योति ।
56
ऐसी समाई
पुनीता धरती में
फिर न आई ।
57
दो प्यारे नग
अयोध्या के कोष को
मिले सुभग ।
58
सूखी सरयू
राम ने न तोड़ी
 जल समाधि।
59
हे राम सिय
मर्यादा ,शुचिता का
दे दो अमिय 
60
पूजो राम तो
मन अभिराम  हो
अविराम हो ।
61
रावण जलें
मन में हों जितने
जयी अयोध्या ।
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