अनिता मंडा
1
परिभाषाएँ प्रेम की, गई अधूरी छूट।
खिलता जिस पर पुष्प-मन, डाल गई वो
टूट।।
2
पाखी तिनके खोजते, कहाँ बनाएँ नीड़।
जंगल हैं कंक्रीट के, दो पायों की
भीड़।।
3
नीड़ बनाया था जहाँ, कहाँ गई वो
डाल।
वाणी तो अब मौन है, नज़रें करें
सवाल।।
4
ओढ़ चाँदनी का कफ़न, सोई काली रात।
अपने मन को तो मिली, चुप्पी की
सौगात।।
5
चुप्पी हमने साधकर, कर डाला अपराध।
प्यासा हर पल रक्त का, समय बड़ा है
व्याध।।
6
बंद पड़ी सब खिड़कियाँ, खुले न
रोशनदान।
अवसादों के जाल से, मन का घिरा
मकान।।
7
बादल घिरते देखकर, चिड़िया है
बेहाल।
जिन शाखों पर घोंसला, रखना उन्हें
सँभाल।।
8
बालकनी में हैं रखे, कितने मौसम
साथ।
यादों वाली चाय है, हाथों में ले
हाथ॥
9
दुख गलबहियाँ डालकर, चलता हर पल
साथ।
याद नहीं किस मोड़ पर, छोड़ चला सुख
हाथ।।
10
सदियों से होता नहीं, लम्हों का
अनुवाद।
यादों की धारा बहे, मन सुनता है
नाद॥