पथ के साथी
Wednesday, November 3, 2021
Friday, September 17, 2021
1132
1-अश्रु -भीकम सिंह
नैनों में घिरे
घटा-से
कभी
पलकों से झरें ।
उर से
उलझे हैं
अभी
क्या करें, क्या ना करें ।
अधरों
तक आ जाते हैं
ये अश्रु
और कहाँ मरें ।
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2-घनाक्षरी छंद
- निधि भार्गव मानवी
हँसता गाता खेलता, प्रीत का संसार दूँ
माँग में सजा के प्रीत, लिख डालूँ नयी रीत
मन भावनी ऋतु से, जीवन सँवार दूँ
अँखियों को चार कर, नेह की मिठास भर
सारे सुख
जगत के, प्रियतम
वार दूँ
चंदा मैं चकोर तुम, आशाओं की भोर
तुम
अपनी कोमल
बाँहों का आ तोहे हार दूँ
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Thursday, December 17, 2020
1037-चलो भरें हम भू के घाव
ज्योत्स्ना प्रदीप
(जयकरी/ चौपई छन्द/
विधान~चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ,अंत
में गुरु लघु।दो-दो चरण समतुकांत।)
धरती जीवन का आधार।
धरती पर मानव - परिवार ।।
जीव - जंतु की भू ही मात।
धर्म - कर्म कब देखे
जात।।
झील, नदी,
नग ,उपवन,खेत ।
हिमनद, मरुथल
, सागर,रेत ।।
हिना रंग की मोहक भोर।
खग का कलरव नदिया शोर।।
करे यहाँ खग हास -
विलास ।
अलि ,तितली
की मधु की प्यास।।
तारों के हैं दीपित वेश।
सजा रहे रजनी के
केश।।
नभ में शशि -रवि के
कंदील।
चमकाते धरती का शील।।
युग बदला मन बदले भाव ।
मानव के अब बदले चाव
।।
हरियाली के मिटे
निशान ।
वन , नग
काटे बने मकान ।।
मानव के मन का ये
खोट ।
मही -हृदय को देता
चोट ।।
मत भूलो हम भू
- संतान ।
करो सदा सब माँ
का मान।।
हरियाली का कर
फैलाव ।
चलो भरें हम भू
के घाव।।
b
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Wednesday, June 17, 2020
1008
Tuesday, February 18, 2020
958-ज्योत्स्ना प्रदीप की छन्दोबद्ध रचनाएँ
Sunday, May 5, 2019
900
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गीत- मंजूषा मन
Friday, May 3, 2019
899
Monday, April 22, 2019
895
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गूगल से साभार |