सत्या शर्मा ' कीर्ति ' की कविताएँ
1-मेरी इच्छाएँ
1-मेरी इच्छाएँ
मेरी तमाम जीवित इच्छाओं
में एक यह भी है
कि किसी दिन
सूरज अपनी रोशनी
की लंबी चादर बुन लें
और रात की गहरी कालिमा
को भी उजालों से भर दे
ताकि अँधेरी सुरंग- सी
जिंदगियों में भी
प्रकाश के कण भर सके....
कि कभी बादल
अपने गुब्बारे से शरीर में
भर ले ढेर सारा पानी
और तृप्त कर दे धरती का
सतरंगी आँचल
ताकि तप्त होती गर्मियों में भी
बुझती रहे हर कंठ की प्यास...
कि ठिठुरती रातें
अपनी सर्द हवाओं को
बाँधकर रखे
किसी गर्म खूँटे से
ताकि कँपकँपाती रातें
छीन न ले अनमोल जाने...
हाँ , मेरी तमाम जीवित
इच्छाओं के बीच ये भी है
की इसे मैं होते हुए
देखना चाहती हूँ....
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2-हम - तुम
हाँ
फिर आऊँगी
तुम्हारी यादों में
अपने दिल
के कमरे को
रखना तुम
ख़ाली
सुनो बाहर
शोर होगा
ज़माने का
और
दुखों की तेज
धूप में
पीले हो जाएँगे
हमारे रिश्ते के
कोमल पत्ते
पर, फिर भी आऊँगी
तब मेरी धड़कनों की
आहटों पर
तुम खोल देना
अपने मन में
चढ़ी वेदना की
साँकल को .....
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आहटों पर
तुम खोल देना
अपने मन में
चढ़ी वेदना की
साँकल को .....
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