1-छूटे थे हाथ
कृष्णा वर्मा
छूटे थे हाथ
बँटे थे मन
कटे थे अनगिन
तन-बदन
प्यार- मोहब्बत
चाहतें- ख़्वाब
मिले थे मिट्टी में
होने को ख़ाक
छूटे थे पुरखे
औ माँ- सी ज़मीन
लम्हा-लम्हा यादें
हो गईं तक़्सीम
यूँ पाई आज़ादी
बने स्वाभिमानी
सिंचीं थीं जड़ें
रक़्त के खाद-पानी
हुए आज़ाद
देके कितने बलिदान
हैं कुर्बानियों की
लम्बी दास्तान
भारत के सपूतों
पले मन में अरमान
थामें रखना कस के
तिरंगे की लगाम
लहराए सदा
एकता के दम से
हमारे प्यारे भारत की
आन -बान शान
जय हिन्द जय भारत।
-0-
2-कोशिशों में कशिश
डॉ. सुरंगमा यादव
1
कोशिशों में कशिश तो होती है
मंज़िलें खुद ही चली आती हैं
इत्तिफ़ाक़न मंजिल न भी मिले तो-
कोशिशें तजुर्बा तो बढ़ाती हैं।
2
ज़िन्दगी इतनी आसान भी नहीं-
जितनी हम समझ लेते हैं
ज़िन्दगी इतनी मुश्किल भी नहीं
जितनी हम बना लेते हैं।