पथ के साथी

Sunday, April 1, 2018

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मौन (दुमदार दोहे)
परमजीत कौर'रीत'
1
नयन नीर नि:शब्द  तो ,मन-वाणी भी मौन ।
दोनों निश्छल जानते, भीतर कैसा कौन ।।
वृथा संशय कब करते ।।
2
सब कुछ सहता मौन हो, माना धरती-अक्ष ।
लेकिन इक भूडोल से,कह देता निज पक्ष ।।
सहन की होती सीमा ।।
3
सबने निज अनुसार ही ,उसके ढूँढे अर्थ ।
वो निश्छल का मौन था,कहता क्या असमर्थ ।।
पाप न मन में  था कभी।।
4
सबको मिलता है वही,  भाल लिखा जो अंक ।
यश-अपयश प्रारब्ध हैं, दोषी कहाँ मयंक ।।
भाग्य ,जो हमने पाया ।।
-0-
श्री गंगानगर(राजस्थान)