1-नन्हा बचपन रूठा बैठा है
-डा०जेन्नी शबनम
अलमारी के निचले खाने में
मेरा बचपन छुपा बैठा है
मुझसे डरकर
मुझसे ही रूठा बैठा है
पहली कॉपी पर पहली लकीर
पहली कक्षा की पहली
तस्वीर
छोटे-छोटे कंकड़ पत्थर
सब हैं लिपटे साथ यूँ
दुबके
ज्यों डिब्बे में बंद
ख़ज़ाना
लूट न ले कोई पहचाना
लूट न ले कोई पहचाना
जैसे कोई सपना टूटा बिखरा
है
मेरा बचपन मुझसे हारा बैठा है,
अलमारी के निचले खाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
ख़ुद को जान सकी न अब तक
ख़ुद को पहचान सकी न अब तक
जब भी देखा ग़ैरों की नज़रों से
सब कुछ देखा और परखा भी
अपना आप कब गुम हुआ
इसका न कभी गुमान हुआ
खुद को खोकर खुद को भूलकर
पल-पल मिटने का आभास हुआ
पर मन के अन्दर मेरा बचपन
मेरी राह अगोरे बैठा है,
अलमारी के निचले खाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
देकर शुभकामनाएँ मुझको
मेरा बचपन कहता है आज -
अरमानों के पंख लगा
वो चाहे उड़ जाए आज
जो-जो छूटा मुझसे अब तक
जो-जो बिछुड़ा दे कर ग़म
सब बिसूर कर
हर दर्द को धकेल कर
जा पहुँचूँ उम्र के उस पल
पर
जब रह गया था वो नितांत अकेला
सबसे डरकर सबसे छुपकर
अलमारी के खाने में मेरा बचपन
मुझसे आस लगाए बैठा है,
आलमारी के निचले खाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
बोला बचपन चुप-चुप मुझसे
अब तो कर दो आज़ाद मुझको
गुमसुम-गुमसुम जीवन बीता
ठिठक-ठिठक बचपन गुज़रा
शेष बचा है अब कुछ भी क्या
सोच विचार अब करना क्या
अंत से पहले बचपन जी लो
अब तो ज़रा मनमानी कर लो
मेरा बचपन ज़िद किए बैठा
है,
आलमारी के निचले खाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
आज़ादी की चाह भले है
फिर से जीने की माँग भले
है
पर कैसे मुमकिन आज़ादी
मेरी
जब तुझपर है इतनी
पहरेदारी
तू ही तेरे बीते दिन है
तू ही तो अलमारी है
जिसके निचले खाने में
सदियों से मैं छुपा बैठा हूँ
तुझसे दबकर तेरे ही अन्दर
कैसे-कैसे टूटा हूँ
कैसे-कैसे बिखरा हूँ
मैं ही तेरा बचपन हूँ
और मैं ही तुझसे रूठा हूँ
हर पल तेरे संग जिया पर
मैं ही तुझसे छूटा हूँ,
अलमारी के निचले खाने में
मेरा नन्हा बचपन रूठा बैठा है।
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2- मंजूषा ‘मन’
सब अँधेरों को उजालों से डराया जाए।
एक दीपक आज बस ऐसा जलाया जाए।
काँप कर अज्ञान का तम भाग जाए दूर
हर तरफ फैले उजाला सुख
मिले भरपूर।
सुख का ये विश्वास हर मन
में जगाया जाए।
एक दीपक आज बस ऐसा जलाया जाए।
एक दीपक ही बहुत है इन
उजालों के लिए
हौसला थोड़ा बहुत है इन इरादों के लिए।
रख भरोसा इक कदम आगे
बढ़ाया जाए।
एक दीपक आज बस ऐसा जलाया जाए।
हार मत जीवन में तेरे और
उजाले आएँगे
देखना तुझसे ये सारे दर्द
भी डर जाएँगे।
स्वप्न का नन्हा घरौन्दा इक बसाया जाए।
एक दीपक आज बस ऐसा जलाया जाए।
कौन कहता है की अब फूल न
खिल पाएगा,
दीप के आगे अँधेरा कितने
दिन चल पाएगा।
चाँद तारों को धरा पर आज
लाया जाए।
एक दीपक आज बस ऐसा जलाया जाए।
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