पथ के साथी

Friday, February 14, 2020

956-यादों-सा बिखरके


पूनम सैनी

यादों-सा बिखरके मुझसे
वो कही लम्हों-सा सँवर रहे है
और खुद को सँभालते,देखो
हम तिल-तिल बिखर रहे है। 

खाली किताब पर आखर 
बस दो ही लिखे हमने
कोई कहे उनसे,हम तो
धीमे से निखर रहे है

म की महफ़िल में मेरी
नाव डूब ही तो जाती
पर हौसलों के मेरे सदा
ऊँचे ही शिखर रहे हैं।
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