कमला
घटाऔरा
हे पिता !
पाने को प्यार तेरा
मैं तो बार -बार
माँ की कोख में आती रही
दुनिया के भय से तू क्यों मुझे
लौटाता रहा ?
कितना रोया था दिल तेरा ,
भ्रूण हत्या का पाप कर
औरों की ख़ुशी के लिए
अपनी ख़ुशी कुर्बान की।
क्यों ?
हे मेरे पिता परमेश्वर !
मैं तो कुल रौशन करने को
कितने मंसूबे बाँध
चली थी उस लोक से।
मेरे सब अरमानों की बलि
तेरी इक ‘हाँ’ ने ले ली।
कुछ अनुमान भी नही तुझे
उस अर्द्धांगिनी का,
जो अंश ग्रहण कर तेरा
राह देखती रही माँ बनने की
रह गई लुटी- पुटी सी
क्या दोष था उसका कि
तेरा अंश बेटा नही बेटी था।
हे ईश ! मेरे जन्मदाता !
मेरे प्यार की क्यों चाह नहीं ?
देख ज़रा तेरे दिल जैसा
है सूना -सूना घर
तेरा
नहीं सुन पाया, तू
किलकारी नन्ही कली की
न सुन पाया गीत हवाओं का
जो गूँजना चाहता था
तेरे घर आँगन में।
स्वागत हित कलिका के।
मेरे जनक !
अब के बार मत लौटाना
अपनी दुलारी सीता को।
मेरे रक्षक -पालक !
लाडली हूँ सदा से तेरी
बेटे से बढ़कर रखती ख़्याल।
भाग्य बेटी का है
कहाना धन पराया।
क्या यही दोष मेरा ?
इसीलिए तू ठुकराता रहा ?
कुछ तो बताओ हे पूज्य पिता !
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