-रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु’
बहुत हैं बादल
घिरे अन्धेरे
उदास न होना
तुम चाँद मेरे।
आशा रखोगे
बादल छँटेंगे
दु:ख भी घटेंगे
होंगे सवेरे ।
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अकेली छुअन
भिगो देगी मन
सींचेगी प्राण
द्वारे तुम्हारे ।
तेरा दु:ख सहूँ
मैं किससे कहूँ-
‘दे दो सभी दु:ख
मुझको उधारे।”
लहरें तरसतीं
तट को परसतीं
ग्रहण लगा चाँद
सागर निहारे ।
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