पथ के साथी

Monday, September 19, 2022

1245-तेरा पावन प्यार।

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1
तुम बोलो सुनती रहूँ
, मधुरिम ये आवाज।
तुमसे ही तो है सधासाँसों का यह साज।।
2
तकिया तेरी बाँह का, थपकी देते हाथ।
मेरे सुख की नींद का, कारण तेरा साथ।।
3
मेरे दुख से हो दुखी, ढूँढा तुरत निदान।
पाया तेरे रूप मेंज्यों मैंने भगवान।।
4
उल्टा पड़ता आज तोलू का हर इक दाँव।
तेरा प्यार मुझे हुआवट की प्यारी छाँव।।
5
धन- दौलत, पद, नाम की, कैसी है दरकार।
मुझको बरकत दे रहातेरा पावन प्यार।।
6
घोर अँधेरे में धरेरोज दुआ के दीप।
प्रेम तुम्हारा चाँद- सा, चमका सदा समीप।।
7
इसीलिए तो कट गएबाधाओं के जाल।
तुमने छोड़ा ही नहीं, मेरा कभी खयाल।।
8
कैसे मिलता है तुम्हें, मेरे मन का हाल।
दूरी अपने बीच की, धरती से पाताल।।
9
सरगम मेरी साँस कीछेड़ सुनाते राग।
तुमने मन का कर दिया, हरा- भरा यह बाग।।
10
करते हो नित नेम से,  मेरी खातिर जाप।
मीत मुझे लगता नहीं, तभी समय का शाप।।
11
चुभ सकता है क्या भला, मुझको कोई शूल।
मीत तुम्हारा प्यार येहै पूजा का फूल।।