अन्नपूर्णा बाजपेयी
उठ जाग रे
मुसाफिर !
दुनिया में कुछ सार नहीं ,
दो दिन का ये खेल तमाशा ।
क्या राजा - रंक क्या रानी ,
पंडित ,महंत औ ज्ञानी ।
यह जग
सारा अकथ कहानी ,
कुछ भी यहाँ
करार नहीं ,
दुनिया में है सार नहीं ।
उठ जाग रे
मुसाफिर !!
सूरज चंदा औ सितारे ,
सागर, सलिल, लहर किनारे ।
एक दिन ये नहीं रहेंगे ,
बिलकुल भी
आधार नही ।
दुनिया में है सार नहीं ,
उठ जाग रे
मुसाफिर !!
बन जा दुनिया से कुछ न्यारा ,
तेरा होगा तभी गुजारा ।
मानुष की ये काया पाई ,
काहे फिरता लगी लगाई ।
फिर मिलती यह हार नहीं ,
दुनिया में है सार नहीं ।
उठ जाग रे
मुसाफिर !!