(डॉ. गोपाल बाबू शर्मा से मैं बहुत सालों से परिचित हूँ।प्रस्तुत काव्य- संग्रह 'जिन्दगी के चाँद- सूरज' उनकी बहुआयामी रचनाओं का संग्रह है। इसमें गीत- गजल ही नहीं, बाल- गीत और हास्य- व्यंग्य प्रधान रचनाएँ भी सम्मिलित हैं।
उनकी कुशल लेखनी का ही यह करिश्मा है कि जिस विधा का भी उसने
स्पर्श किया है, उसे सुवर्ण में परिवर्तित कर दिया है। लगता
है उनकी कलम में पारस का निवास है।
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पद्मश्री कविवर गोपालदास नीरज )
यह न समझा था कि मेरी जिन्दगी के चाँद- सूरज,
रोज प्रात: साँझ आने से प्रथम ढलते रहेंगे।
हृदय- मन्दिर में बिठाकर साधना की थी तुम्हारी,
छोड़ सारे मीत मैंने कामना की थी तुम्हारी।
प्रिय! तुम्हारी आरती को प्राण के दीपक जलाए,
पर तुम्हारे भाव तो पाषाण थे, गलने न
पाए।
जो लजीले स्वर तुम्हारे पास जाकर लौट आए,
आह बनकर मधुर गीतों में सदा पलते रहेंगे।
इन अँधेरी बस्तियों से दूर ही भागे सवेरे,
वह नहीं मधुमास आया, जो कभी
सौरभ बिखेरे।
मोतियों के हार कितनी बार नयनों ने सजाए,
तृषित अधरों पर कभी मेरे न तुम मुस्कान लाए।
फल मिलें मीठे न चाहे, पर
तुम्हारे हाथ से,
अनजान में सींचे गए अंकुर सभी फलते रहेंगे।
आत्मा की भावना को कल्पना ही मान पाए,
जान सारा जग गया, पर तुम
न किंचित जान पाए।
देखने न आए न लोचन एक पल को भी तुम्हारे,
मिल गई मझधार मुझको, पर
किनारे मिल न पाए।
सत्य है यह, आज रोकी जा रही है राह
मेरी,
आँसुओं के कारवाँ लेकिन सदा चलते रहेंगे।
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