पथ के साथी

Wednesday, August 31, 2022

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 1-प्रेम -ज्योति   (सॉनेट ) / प्रो.विनीत मोहन औदिच्य

 


चाल गज की चले मान से वो भरी

कर नदी पार वो धार से अति डरी

रूप की राशि से ये मुदित मन हुआ

गात कंपित हुआ भाल उसने छुआ।

 

नैन हैं मद भरे होठ भी अधखुले

केश बिखरे हुए  चाँदनी में धुले

लाल अधरों सखी लाज- सी खेलती

काम का तीव्रतम वार- सा झेलती ।

 

हाल बेहाल कर ज्वार जब- जब उठा

प्रेम का पत्र भी कामना ने लिखा 

तीव्र साँसें चलीं बढ़ गई धड़कनें

मैल मन का धुला मिट गई अड़चनें ।

 

 रात भर श्याम ने नृत्य जीभर किया 

प्रीति निष्काम की ज्योति से भर दिया।।

 -0-प्रो.विनीत मोहन औदिच्य,ग़ज़लकार एवं सॉनेटियर,सागर, मध्यप्रदेश 

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2-दोहे- रश्मि विभा त्रिपाठी 

1

1
तुमसे ही है स्वर मिला
, अधरों को संगीत।

कभी न गाते मैं थकूँतुमको हे मनमीत।।

2

मधुर मिलन को हम प्रिये, क्या होंगे मजबूर।

तन- मन एकाकार हैंकभी न होंगे दूर।।

3

मन से मन का जब बँधे, रिश्ता खूब प्रगाढ़।

लेता प्रेम उछाह यों, ज्यों नदिया में बाढ़।।

4

रूप तुम्हारा देखतीरजनी हो या भोर।

तुम आकरके बस गएइन आँखों की कोर।।

5

पीर जिया में जो उठे, हो पल में उद्धार।

प्रिये तुम्हारा प्रेम हीएकमात्र उपचार।।

6

साँसों में आनंद है, जीवन मेरा स्वर्ग।

मन के पन्ने पे रचे, तुमने सुख के सर्ग।।

7

जग का मेला घूमती, पकड़े तेरा हाथ।

हर वैभव से है मुझे, प्यारा तेरा साथ।।

9

मोल नहीं कुछ माँगता, तेरा भाव समर्थ।

मेरे जीवन को दिया, तूने सुन्दर अर्थ।।

10

मन- मरुथल उमड़ी घटा, झरी नेह की बूँद।

आलिंगन में रोज ही, भीगूँ आँखें मूँद।।

11

फूल दुआ के साथ ले, तुम आए हो पास।

मुझको होता ही नहीं, अब दुख का अहसास।।

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