1-ज्योत्स्ना
प्रदीप
क्षणिकाएँ
1-
अपने ख़्वाबों को
इतना बेग़ैरत न कीजिए
टूटें..तो गिरें आप पर
बेहयाई से
फिर....
हैरत न कीजिए ।
2
दुल्हन की हथेली पर
सुबह की लाली
बड़ी मेहरबान थी
जबकि मेहंदी
....
लहूलुहान थी
!
-0-
2- मंजूषा 'मन'
ऐ मेरी आँख के पहले सपने
फिर न जाने मुझे नींद आये कि न
आये कभी।
वो जो रूठेगा तो
मैं उसको मना लाऊँगी,
मैं जो रूठी तो वो मुझको
मनाये कि न मनाए कभी।
उसकी बातों पे यकीं
मुझको बहुत है लेकिन
अपनी तकदीर का क्या
मुस्कुराए की न मुस्कुराए कभी।
ऐ मेरी आँख के पहले सपने
मुझको इतना तू परेशान न कर
जाने ये वक़्त मुझे उससे
मिलाए की न मिलाए कभी
ऐ मेरी आँख के पहले सपने
मुझको इक बार ज़रा चैन से सो लेने
दे।