पथ के साथी

Saturday, November 7, 2015

सपने



1-ज्योत्स्ना प्रदीप
क्षणिकाएँ
1-
अपने ख़्वाबों को
इतना बेग़ैरत  न कीजि
टूटें..तो गिरें आप पर
बेहयाई से
फिर.... हैरत न कीजि
2
दुल्हन की हथेली पर
सुबह की लाली
बड़ी  मेहरबान थी
जबकि मेहंदी ....
लहूलुहान थी !
-0-
2- मंजूषा 'मन'

ऐ मेरी आँख के पहले सपने
फिर न जाने मुझे नींद आये कि न आये कभी।

वो जो रूठेगा तो
मैं उसको मना लाऊँगी,
मैं जो रूठी तो वो मुझको
मनाये कि न मनाए कभी।

उसकी बातों पे यकीं
मुझको बहुत है लेकिन
अपनी तकदीर का क्या
मुस्कुरा की न मुस्कुरा कभी।

ऐ मेरी आँख के पहले सपने
मुझको इतना तू परेशान न कर
जाने ये वक़्त मुझे उससे
मिला की न मिला कभी

ऐ मेरी आँख के पहले सपने
मुझको इक बार ज़रा चैन से सो लेने दे।

-0-
3-कविताएसुनने के लिए नाम पर क्लिक कीजिए
डॉ मंजुश्री गुप्ता की कविताएँ


वाचन अपूर्व सक्सेना