पथ के साथी

Monday, September 5, 2022

1241

 

गीत मैं गाता रहा - सॉनेट 

मूल ओड़िआ सॉनेट - मानस रंजन महापात्र

 


चलता रहा मैं एकाकी ढूँढने एक नव प्रभात

पथ हुआ प्रलंबित जीवन रह गया असमाप्त 

पूर्ण हो यह जीवन -की याचना यहीं तुम्हारे द्वार 

तुम रहे किसी निभृत मंदिर में बन अपरिचित अवतार

 

गतिहीन हुए मेरे कर-पद,शीश भी हुआ क्लांत अमाप 

परिचित थे जितने सब लौट गए साथ लिए अनुताप

थी कभी पुलक प्रेम की ..था कितना आनंद उल्लास

सबकुछ हुआ अंत,हुआ शून्य.. रह गया कुछ प्रतिभास

 

यह कैसा विचित्र दिवस है..घोर तमाच्छन्न है गमथ 

क्यों मिला विराग प्रेम-सरि में तुम्हारी क्यों हुआ विपथ

किया था अतीव प्रेम जीवन से किंतु रहा  वह उदासीन 

इससे पूर्व था पूर्ण-रिक्त मैं,अब हुआ पुनः मैं दीन-हीन।

 

 

है ज्ञात मुझे,ऊषा है एक तृषित नीलाम्बरी खगिनी

तथापि क्यों मैं गा रहा हूँ अनवरत प्रकाश  की गीत- रागिनी?

-0-


हिंदी अनुवाद - अनिमा दास,कटक, ओड़िशा