साधना मदान
सड़क पर कचरा व ट्रेफ़िक रुकेगा
कब तक
सड़क पर रसोई पकती है,
भला ऐसी रोटी भी कभी पचती
है?
बाहर जाकर खाना और पचाना
स्वाद के साथ आलस भी है
बहाना
यहाँ वहाँ कोई सड़क के पास
बाग के साथ, दुकान के आगे, स्कूल के पीछे
आखिर गंदगी का ये अम्बार लगेगा
कब तक?
सस्ता खाना और स्वाद का चटखारा
नुक्कड़ पर बिकेगा कब तक?
भक्ति भाव व दान के नाम पर
भंडारा बँटेगा कब तक?
खाया लंगर,लगाया भंडारा
फिर पत्तल के नाम पर
थर्माकोल के कचरे का अम्बार
लगेगा कब तक?
ऐसे ही प्रदूषण की धूल में
कचरे का ज़हर फैलेगा कब तक?
ऐसे ही सड़क पर कचरा बिखरेगा
कब तक?
कब तक?आख़िर कब तक?
इसका जवाब है हमारे और सरकार
के पास
इक दूसरे की ही हम अब बनेंगे
आस
नहीं लेंगे जंक फूड की बास
वरना फ़ास्टफ़ूड ही करेगा
हमारे स्वास्थ्य का नाश
न लार टपकाएँ, न चटखारे लें
तभी स्वच्छ खानपान पर बढ़ेगा
विश्वास
स्वाद और साथ साथ चाट के
मज़े को
हम भी हैं स्वीकारते
जनता के साथ सरकार को भी
हम जगाते
सरकार सफाई की करेगी जब
सख्ती
शुद्ध भोजन की पौष्टिकता
बनेगी हमारी शक्ति
निश्चित स्थान व समय की
जब
इन खोमचे वालों पर लगेगी
पाबंदी
बिखेरना नहीं समेटना होगा
तब ज़रूरी
अन्न और मन की पवित्रता
से
जुड़ जाएगा व्यक्ति
तो चाट का चटखारा भी चलता
रहेगा
गुरुद्वारे और मंदिर के
परिसर में ही
भंडारा व लंगर भी बँटता
रहेगा
तभी लगेगा जीभ के स्वाद
का सही तड़का
तभी हटेगा यहाँ वहाँ से गंदगी
का मलबा
तभी दिखेगा सफ़ाई का जलवा
तभी बचेगा शुद्ध पर्यावरण ।
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