याद आता है
1
गिने
थे अनगिन तारे
गोदी
में बैठे तुम्हारे
हर
रात ढूँढा ध्रुव तारा
तुम्हारी
तर्जनी के सहारे
तुमसे
ही जाने थे
दिशाओं
के नाम
फूलों
के रंग,
पर्वत,पहाड़
नदियाँ,सागर देश
गुमनाम
पास
थी तुम्हारे
जादू
की छड़ी
जो
हल कर देती थी
प्रश्न
सारे।
2
याद
आता है
पिता
का चश्मा
जिसे
लगाने की
कितनी
ज़िद्द थी मेरी
और
तुम
केवल
मुस्कुराके कहते
अभी
उम्र नहीं है तेरी
अब
रोज़ लगाती हूँ चश्मा
लगता
है
आस
पास ही हो आप
और---
चश्मा धुँधला हो
जाता है|
3
याद
आता है
हर
शाम पिता से अधिक
उनके
झोले की प्रतीक्षा करना
उसी
में से पूरे होते थे
सारे
सपने,
मनोकामना
तुमने
कभी नहीं दुखाया
बालमन
उसमें
थी निधि स्नेह की
त्याग
का अपरिमित धन।
4
कथनी
से करनी बड़ी
तुम्हारी
सीख,
है
धरोहर
पीढ़ी
-दर- पीढ़ी
दीप
स्तम्भ सी
पथ
प्रदर्शक।
5
मैंने
न छुआ आकाश कभी
और
न मापी सागर की गहराई
न
कभी समेटी बरगद की छाया
न
देखी हिमालय की ऊँचाई
मैंने
तो बस अपने पिता में
इन
सब को समाहित होते देखा है।
-0-
2-मुकेश बाला
आज याद आया
आज
हर संतान में
श्रवण
कुमार समाया है
अवहेलना
का शिकार
पिता
आज याद आया है
उसने
तो कन्धों पर लादा था
हमने
स्टेटस यान में बिठाया है
तीर्थ
यात्रा हुई पुरानी
फेसबुक
का भ्रमण कराया है
सबके
ट्विटर ब्लॉग पर
आज
तो बस बापू ही छाया है
पाश्चात्य
का चढ़े न रंग
भारतीयता
को अपनाया है
फादर्स
डे को भुलाकर
हमने
पितृ-दिवस मनाया है
परम्परा
से कटकर ही तो
ये
आधुनिक युग कहलाया है
-0-