1-ज्योत्स्ना प्रदीप
1-हरिगीतिका
(प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ, 16 तथा 12 मात्राओं के बाद यति तथा अन्त में लघु-गुरु वर्ण
अवश्य होता है। कहीं-कहीं पदों में यति 14-14मात्राओं पर भी हो
सकती है ।)
सहमी नदी
सहमी
नदी यह देख के,हर रोज पादप हैं घटे ।।
नग
चीख भी सुन लो कभी,पल में हिया उसका फटे ।।
दिखता
नहीं खग खेत में,सब रेत से सपने झरे ।।
अब
मोर भी चितचोर ना,दिखते नहीं घन वह भरे ।।
खिलते
नहीं अब फूल भी,बस शूल ही मन में उगे ।।
अब
हंस ना बसते नदी,सर, ताल सीपिज ना चुगे ।।
कर
दो भला फिर से ज़रा,तुम बीज भूतल रोप दो ।।
धरती
भली कितनी छली,उसको कभी मत कोप दो ।।
युग
कौनसा अब आ गया,तम छा गया फिर से घना ।।
मिटती
नहीं अब पीर ये,रघुवीर हे कर दो दया!
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2-दोधक
(यह 11 वर्ण का छन्द है ।[तीन भगण (211+211+211और दो गुरु 2+2होते हैं)
प्रीत
भरा यह मास निराला ।
माधव
झूम रहा मतवाला ।।
रंग
सजे बिखरे हर डाली ।
गीत
नए बुनती हरियाली।।
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3—तोटक छंद
(चार सगण 112 =कुल 12
वर्ण-चार चरण)
बिन
चाँद कभी जब रात रहे ।
किससे
मन की यह बात कहे ।
तम
चीर हिया फटता रहता ।
मन
ने सब भीतर घात सहे ।
शशि
के बिन जीवन सार नहीं।
अब
ना प्रभ की रसधार कहीं।
हरसा
हिय साजन से अपना ।
फिर
भी छिपता उस पार कहीं ।।
मनभावन
साजन आस करूँ ।
अब
चंद्र बिना कित साँस भरूँ ।।
अब
आ प्रिय जीवन दे मुझको ।
फिर
से अधरों पर हास धरूँ ।।
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गीत- मंजूषा मन
फिर मिलूँ मैं न मिलूँ दीदार तो कर लो।
आखरी है ये मिलन अब प्यार तो कर लो।
ढ़ल रहा जो समय ये तो फिर न आएगा,
साथ मेरा ओ सनम तू फिर न पाएगा।
एक सपना आँख का साकार तो कर लो।
आखरी है.......
दीप मन का प्रज्वलित है अब बुझाओ भी,
गीत मैंने इक लिखा है गुनगुनाओ भी।
मौन में जो स्वर बसे गुंजार तो कर लो।
आखरी है........
प्रेम की चौपाइयाँ अब गा न पाऊँ मैं,
है यही अच्छा कि तुझको छोड़ जाऊँ मैं।
तुम मुझे उठकर विदा इस बार तो कर लो।
आखरी है........
फिर मिलूँ मैं न मिलूँ दीदार तो कर लो।
आखरी है ये मिलन अब प्यार तो कर लो।
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