सीमा स्मृति
कल देर रात
मोहब्बत,शबाब,शराब के
जाम छलके होगें
आर्केस्ट्रा की धुन पर,
थिरकते कदमों,
तालियों की गरगराहट, के बीच
नव दम्पती नव सूत्र में बँध
वर्तमान पर भविष्य की नींव,
रख रहे होंगे
तभी
इतनी सुबह
शामियाने के उस पिछले
कोने में,
चावल के ढेर
पनीर के चन्द टुकडे
अधखाए भल्ले
फैली चटनी
सूखी होती पूरियों के
पिज्जा के टुकडे़,नूडल की गंध
ऊपर भिनभिनाती मक्खियॉं
टेडी दुम वाले कुत्ते
और
कागज बीनते लड़कों का झु़ड़
अपने अपने हिस्से
बटोरते सुना रहे हैं
कल रात की अनदेखी कहानी ।
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