पथ के साथी

Saturday, March 4, 2017

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डॉ.पूर्णिमा राय
1-शृंगार/महाशृंगार छंद

महाशृंगार छंद  चार पंक्तियों का छोटा मात्रिक छंद है ।जिसमें हर पंक्ति में कुल 16 मात्राएँ होती  हैंचरण के आरम्भ में 3-2 का क्रम होता है।दो-दो चरणों में  तुकांत होता है।हर पंक्ति का अंत गुरु लघु से  होना अनिवार्य है।
1
तुम्हीं हो जग के पालनहार
विश्व का भला करो करतार।
मिटा कर वैर और तकरार
बसाओ एक नया संसार।।
2
तभी हो दुनिया का उद्धार
गिरा दें वर्ग-वर्ण दीवार।
भरा हो भीतर सबके प्यार
सजे फिर जन्नत सा संसार।।
3
मिले संबुद्धि संग संस्कार
बने पावन निर्मल व्यवहार।
सूरत सीरत हो एक सार
खिले जीवन में पुष्प बहार।।
4
अमोल ज्ञान का गुरु भंडार
जले दीपक मिटेअंधकार।
महकती फिजा ये सद्विचार।।
करें दिलों में ज्ञान उजियार।।

2-  पंचचामर छन्द- डॉ०पूर्णिमा राय,

यह छंद  चार चरण का वर्णिक छंद है जिसके प्रत्येक चरण में लघु गुरु के क्रम से सोलह वर्ण
12       12       12      12      12      12     12 12 )होते हैं।
1
बढें सदा रुके नहीं  मुसीबतें अपार हों
घटा घिरे निराश सी दिखे हिया करार हों ।
भुला वैर भावना सजा गुलाब आंगना
मिटा अहं विरोध को बना सुह्रद भावना ।।
2
मिले खुशी गमी यहाँ  विकास बार-बार हों
अधीर हो न बाँधना विचारपूर्ण सार हों।।
सजे धरा खिले व्योम हवा बहे निखार हों
उड़े अबीर "पूर्णिमा "मिटे सभी विकार हों  ।
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3-ललित छंद (सार छंद)- डॉ०पूर्णिमा राय,

ललित छंद (सार छंद)यह  सम मात्रिक छंद है जिसमें कुल 28 मात्रा होती हैं । 16,12 पर यति है और  अंत में वाचिक भार 22 यानी  (गागा ) है। इसमें कुल चार चरण हैं ।दो-दो चरण  में तुकांत अनिवार्य है

1
मैया का प्यारा आँचल ये,छाँव घनी देता है।
खुशी बाँट के जग में सारी,सब गम हर लेता है।।
मुश्किल की घड़ियों में सबको ,माँ दिखे सुहानी हैं।।
सुख-वैभव को कुर्बान करें ,माँ यही कहानी है।।
2
पावन बेला वैशाखी में फसलें पक जाती हैं।
दृश्य मनोरम देख-देख के चिड़ियाँ मुस्काती हैं।।
जन आनंदित दिखें सभी अब,चाह हृदय भरती है।
कृषकों की हालत सुधरे बस,यही दुआ करती है।।
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4-तोटक छंद-डॉ.पूर्णिमा राय

तोटक छंद में कुल चरण होते हैं।इस छंद के विधान अनुसार (1+1+2)×4 चार सगण अनिवार्य है ।दूसरे शब्दों में लघु लघु गुरु   अनिवार्य है।दो दो चरणों में तुकांत अनिवार्य है।
1
उजियार करे नित सूरज ये;
अँधकार मिटे जग सूरज से।
मुख घूँघट ओढ़ लिया रजनी;
नभ चाँद सुहावन हे सजनी।
2
तपती वसुधा जल को तरसे;
बन बादल नेह धरा बरसे।
वन की लतिका फल-फूल लदी;
तितली फिरती बहु रंग सजी ।
3
चल भाग मुसाफिर वक्त चला ,
जग से किसको कब प्रेम मिला ।।
श्रम के मद में जन चूर हुए
दुख रोग मुसीबत दूर हुए।
4
सुख सीकर आँगन में बिखरे,
सजनी रजनी बनके सँवरे।।
हर चाहत में खुशियाँ सजतीं,
जब पायल भी मधुरा बजतीं ।
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