पथ के साथी

Thursday, March 15, 2012

घर लौटने तक- 3 मुक्तक


घर लौटने तक
-डॉ अनीता  कपूर
( 15 मार्च को पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग और केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय  के संयुक्त  तत्त्वाधान में आयोजित हिन्दीतर  भाषी नवलेखक शिविर चण्डीगढ़ में  मुख्य वक्ता के रूप में पढ़ी गई ।)
तुमसे अलग होकर
घर लौटने तक
मन के अलाव पर
आज फिर एक नयी कविता पकी है
अकेलेपन की आँच से ।
 समझ नहीं पाती
तुमसे तुम्हारे लिए मिलूँ
या एक और
नयी कविता के लिए
 -0-
2-तीन मुक्तक
ज्योत्स्ना शर्मा
1
याद 'उनकी' हमें 'उन-सी प्यारी लगे ,
हर अदा इस ज़माने से न्यारी लगे ।
वो आयें ,ना आयें ये उनकी रज़ा;
बेरुखी भी हमें उनकी प्यारी लगे ।।
2
नयनों में स्वप्न जैसा सजाया तुम्हें,
मन्नतें लाख माँगी तो पाया तुम्हें
अब तुम्हें भूल जाऊँ ये मुमकिन नही;
इस दिल में धड़कनों- सा बसाया तुम्हें ।।
3
मोतियों को सीप में पलने नहीं देते ,
आँसुओं को भी यहाँ लने नहीं देते ।
किस कदर बेदर्द हैं ये आज के रिश्ते ;
देते हैं दर्द ,'आह ' निकलने नहीं देते । ।