रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जो अन्न यहाँ का खाते हैं,
गुण गद्दारों के गाते हैं
जो जमे हमारे ही घर में
हमको ही आँख दिखाते हैं ।
भले आदमी का बेटा जब
सीमा पर जान गवाँता
है
घर में आग लगाने वाला
तब हम पर ही
गुर्राता है ।
खुले आम जो कहें देश को-
‘तुमको टुकड़ों में
बाँटेंगे।’
कान खोलकर के सुन
लेना-
‘तुमको टुकड़ों में
काटेंगे।’
जो विषधर पले आस्तीन में
अब उन्हीं के फन कुचलने हैं
हर बस्ती हर चौराहे पर
भारत के दुश्मन जलने
हैं ।
देश की खातिर वीर जवान
सीमा पर जान लुटाते हैं
उनके बलिदानों को भूले
ये श्वान यहाँ गुर्राते हैं ।
हमको है कसम तिरंगे की
जो हमको आँख दिखाएँगे
साँस हमारी जब तक बाकी
वे यमपुर भेजे
जाएँगे।
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24 फ़रवरी , 2016 ( 12-50)