पथ के साथी

Wednesday, February 24, 2016

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रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

जो अन्न यहाँ का खाते हैं, 
गुण गद्दारों के गाते हैं 
जो जमे हमारे ही घर में
हमको ही आँख दिखाते हैं ।
          भले आदमी का बेटा  जब
          सीमा पर जान गवाँता है
          घर में आग लगाने वाला
          तब हम पर ही गुर्राता  है ।

 खुले आम जो कहें  देश को-
 ‘तुमको टुकड़ों में बाँटेंगे।’
  कान खोलकर के सुन लेना-  
  ‘तुमको टुकड़ों में काटेंगे।’
          जो विषधर  पले आस्तीन में
          अब उन्हीं के  फन कुचलने हैं
          हर बस्ती हर  चौराहे पर
          भारत के दुश्मन जलने हैं ।
देश की खातिर वीर जवान
सीमा पर जान लुटाते हैं
उनके बलिदानों को भूले
ये श्वान यहाँ गुर्राते हैं 
          हमको  है कसम तिरंगे की
          जो हमको आँख दिखाएँगे
          साँस हमारी जब तक बाकी
          वे यमपुर   भेजे जाएँगे।
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24 फ़रवरी , 2016  ( 12-50)