1-मंजूषा मन
जलन
कभी चाय से,
कभी गर्म पानी से
कभी दाल, कभी चिमटा, कभी तेल,
वे छुपा लेतीं हैं
चेहरे से पीड़ा के भाव
वे छुपा लेतीं हैं
बदन पर पड़े छाले,
मुस्कुराते हुए
परोस लातीं हैं थाली
छानकर दे देतीं हैं चाय,
कभी -कभी जो उभर भी आए
पीड़ा की रेखाएँ
चेहरे पर, दर्द आँखों में
तब देखता ही कौन है।
बस इसलिए ही
लड़कियाँ जलकर भी मौन हैं...
वे आग से नहीं जलती उतना
जितना
अकसर जल जाती हैं
छालों को
नज़र अंदाज़ किए जाने से....
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2-डॉ.प्रमोद
सोनवानी पुष्प
प्यारा अपना गाँव ।
गुणी जनों का है पग धरता ,
ऐसा अपना गाँव ।।
गुणी जनों का है पग धरता ,
ऐसा अपना गाँव ।।
अलग-अलग हैं जाति-धर्म पर ,
हैं आपस में एक ।
सबके अपनें कर्म अलग हैं ,
फिर भी हैं हम एक ।।
दुःख में सब मतभेद भुलाकर ।
एक हो जाता गाँव ।।1।।
हैं आपस में एक ।
सबके अपनें कर्म अलग हैं ,
फिर भी हैं हम एक ।।
दुःख में सब मतभेद भुलाकर ।
एक हो जाता गाँव ।।1।।
बहती हैं यहाँ प्रेम की धारा ,
मन में कहीं न द्वेष ।
कर्म को ही हम मानें पूजा ,
हम सबका एक भेष ।।
भावी पीढ़ी को मार्ग दिखाता ।
ऐसा प्यारा गाँव ।।2।।
मन में कहीं न द्वेष ।
कर्म को ही हम मानें पूजा ,
हम सबका एक भेष ।।
भावी पीढ़ी को मार्ग दिखाता ।
ऐसा प्यारा गाँव ।।2।।
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2 अजब
सलोना गाँव
अजब सलोना,सबसे प्यारा,
गाँव हमारा भाई ।
मस्त मगन हो पक्षी नभ में ,
उड़ रहे हैं भाई ।।1।।
गाँव हमारा भाई ।
मस्त मगन हो पक्षी नभ में ,
उड़ रहे हैं भाई ।।1।।
हरी घास है मखमल जैसी,
चहुँ दिशा में हरियाली ।
चहक रही है डाल-डाल पर,
कोयल काली-काली ।।2।।
चहुँ दिशा में हरियाली ।
चहक रही है डाल-डाल पर,
कोयल काली-काली ।।2।।
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डॉ.प्रमोद
सोनवानी पुष्प ,श्री फूलेंद्र साहित्य निकेतन पड़ीगाँव/तमनार-रायगढ़ (छ.ग.)- 496107