पथ के साथी

Thursday, January 28, 2021

1047

 1-इस दुनिया में-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

 

इस दुनिया में अपने मन का

भला किसे आकाश मिला,

सीता हो या राम सभी को

सदा-सदा वनवास मिला।

 

जीवन बीता हमने हरदम

सबके पथ के शूल चुने

हमको प्यार करेगा कोई

हमने सौ-सौ सपन बुने ।

चूमे जब-जब पलक पनीले

इन अधरों की प्यास बुझे

क्रूर कपट -भरे हाथों से

तभी हमको संन्यास मिला।

 

तूफ़ानों के दौर झेलते

सोचा था कुछ पाएँगे

मनमीत को गले लगाकर

सब दु:ख दर्द बताएँगे।

          यह दुनिया है अंधी- बहरी

सुने न देखे यह धड़कन

आलिंगन में जब-जब बाँधा

हमको छल का पाश मिला।

 

अच्छे कामों का फल जग में

सदा नहीं अच्छा होता

जो घर के भीतर तक पहुँचा

वह विषबेल सदा बोता।

         

जिस पर हमें रहा भरोसा

वो आस्तीन का साँप बना

          मन -प्राणों से साथ रहा जो

उसको भी संत्रास मिला।

-0 

1. परी-प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'

कई बार मन में
है आता यही,
मुझे कुछ समझ में
क्यों आता नहीं...?
                       खुलकर यहाँ लोग
                       मिलते नहीं,
                       न हँसते ही हैं
                       और हँसाते नहीं...?
मुखोटों के पीछे
छुपे है सभी,
क्यों, झूठ से दामन
छुड़ाते नहीं....!
                       मंज़िलों पर हैं
                       निगाहें टिकी,
                       क्यों, मील का पत्थर
                       सराहते नहीं....?
हार जीत का
ये अजब खेल है,
दौड़े फिरते हैं सब
ठहर पाते नहीं...!
                       मन में आता है
                       बस अब,
                       यही बार बार,
                       मैं यहाँ पर तो हूँ
                       पर यहाँ की नहीं....
कहीं मैं कोई
परी  तो नहीं...?
कहीं मैं कोई.....
परी तो नहीं !!

-0-0
2. कविता- कहो न

चाँद की बाहों में
चाँदनी अलसाए,
भँवरे की गुंजन सुन
कलियाँ लजाएँ...।
                      सागर की लहरें भी
                      बलखाती सी हैं,
                      तरु पर लताएँ भी
                      मदमाती सी हैं...।
नभ में, पतंग भी
बहकी सी डोलें,
पुरवई चुपके से
कानों में बोले...।
                      फूलों पर, तितली की
                      हल्की सी चुम्बन,
                      बगिया के मन में भी
                      कौंधे है स्पंदन...!
तारों की टिमटिम
शरारत भरी है,
किसी की तो साज़िश
कहीं चल रही है...!
                     सखा मेरे, मुझको
                     यही लग रहा है,
                     बेला मिलन की
                     करीब आ रही है...!
कहो न,
तुम्हें भी
यही लग रहा है,
बेला मिलन की
बस, आ ही गई है....!!

Tuesday, January 26, 2021

1046

 

गुंजन अग्रवाल 

 1

हो न कठपुतली न केवल वोट वाला यन्त्र हो।

आदमी हो आदमी सद्भाव इसका मन्त्र हो।

गूंज वन्देमातरं की  गूँजती हरपल रहे-

तब सफल सच मायनों में ये दिवस गणतंत्र हो।

2

अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन इतना ध्यान रखो।

भारत माँ की आन- बान और सबसे ऊपर शान रखो।

तू- तू मैं- मैं हाथापाई आपस में कर लो जितना-

भारत मे गर रहना तुमको संविधान का मान रखो।

-0-

Monday, January 25, 2021

1045-बीते दिन-2-अभिलाषा!

कृष्णा वर्मा 

 

अम्मा के आँचल में था

ख़ुश बचपन मेरा


चन्दा के घर था

परियों का डेरा

पलकों पर नींदें थीं 

सपनों का फेरा 

बाहों के झूले थे 

काँधे की सवारी 

पीठ का घोड़ा था 

थी मस्ती किलकारी 

छोटी -सी चाहें थीं 

भोली- सी बातें 

तनि रूठ जाते

थे सारे मनाते 

गलियाँ बुलाती थीं

अपना बताती थीं

संगी थे, साथी थे

ख़ुशियों की थाती थी

रूठी अब राहें हैं

अपने पराए हैं

सपने न नींदें हैं

रातें जगाए हैं

दिखावा छलावा है

झूठ चालाकी है

अपनापा क़ब्रों में

प्रेम प्रवासी है

नानी औ दादी अब

बीती कहानी है

बाँचे व्यथा किससे

चहुँ दिश वीरानी है।

-0-

2-अभिलाषा!

डॉ0 सुरंगमा यादव

शब्द-शब्द में ललक
वर्ण-वर्ण कह रहा
भारती की वंदना में
मुझको भी मिले जगह
      बाग में खिले सुमन
      मना रहे ये मन ही मन
      तिरंगे में बँधूँ कभी
       धन्य हो लूँ मैं जरा
            दीप की है आरजू
             सजाऊँ वीर-देहरी
             शौर्य का  बनूँ कभी
             हाँ  प्रत्यक्ष मैं गवाह।

-0-

Sunday, January 24, 2021

1044

 

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1

बीज जितने भी बिखेरे वे सभी मधुबन में खिले।

यार जितने भी बनाए, दुश्मनों के घर में मिले

2

वश नहीं तेरा कि मेरा,हम क्यों मिले इस मोड़ पर

जानता इसको विधाता,क्या कुछ चले हम छोड़कर

3

कुछ अपनों ने तो मुझको इतना प्यार दिया

सौ- सौ जनम मिलें तो कर्ज़ उतारूँ कैसे ।

कुछ ने अपने बनकर इतने थे वार किए

सौ-सौ मरण मरूँ मैं उन्हें बिसारूँ कैसे

4

सब काँटे कुछ ने मेरे पथ के चुन डाले

सब पोर -पोर हाथों के लहूलुहान किए ।

कुछ ने अपने बनकर हज़ारों प्रहार किए

नासूर हमें देकर पूरे अरमान किए ।

लोगों की क्या बातें, लोग दगा देते हैं।

अपने बनकर घर में ,आग लगा देते हैं।

मुक्तक

शान से आगे बढ़ो तुमकल तुम्हारा है

तुम तो मेरी जाह्नवी हो, मुझमें जल तुम्हारा है।

पथ तुम्हारा कंटकों का,संग में ही चलना मुझे

सुमन खिलाने हैं वहाँ तक जहाँ आँचल तुम्हारा है।

-0-

Thursday, January 21, 2021

1043

  मैं हूँ या नहीं- डॉ.महिमा श्रीवास्तव


  रात की खामोशी

 चाँद से झरती

 भूरी टहनियों पर

 धूसर -सी चाँदनी

 पहाड़ों की ढलानों

 पर टिमटिमाती

 मद्धिम सी रोशनियाँ

 झील के किनारे

 घनेरे सायों में

 महकती हवाओं- संग

 खोई सी विचरती 

 यूँ ही एकाकी

 अनुमान लगाती

 तुम्हारे ख्यालों में

 मैं हूँ या नहीं

इस रात के 

तिलस्मी अँधेरे ने

कुछ याद तुम्हें

दिलाया कि नहीं

तुम्हारे जागते हुए

देखे ख्वाबों में

मैं हूँ या नहीं।

-0- 34/1,  Circular road, near mission compound, opposite Jhammu hotel, Ajmer( Raj.) 305001

Email: jlnmc2017@gmail.com

-0-

2-रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

1


शाम ने ढूँढे
गीत गौरैया के भी
हो गगूँगे
2
सरसों-खेत
पहने पीले वस्त्र
खिलखिलाते
3
मुँडेर पर
भोर-बेला में नृत्य
करती पीहू
4
रात अँधेरी
स्मृति का एक दीप
टिमटिमाता
5
सन्ध्या- समय
यादों के पाखी लौटे
उर-वन में
6
हृदय-द्वार
खड़ी स्मृति बनके
पहरेदार
7

खोल दो गाँठें
ह्रदय की हे प्रिय!
चुप्पियाँ तोड़ो
8
तुम न बुनो
ख्वाबों का ताना-बाना,
टूट जागा
9
रश्मि-लहरें
सिन्धु की गोद आके
सूरज बैठा
10
पा रवि-स्पर्श
धरा-भाल दमके

ज्यों स्वर्ण- ताल
11
सूर्य ज्यों झाँका
खिला धरा का रूप
स्वर्णिम आभा
12
होते ही साँझ
आ छिपा सिन्धु-गोद
सूर्य-बालक
13
सूर्य-बालक
पर्वतों -संग खेले
आँख-मिचौली
14
पर्वत रोते
सर से साया छिना
कटे चिनार
15
पुष्प से प्रेम
नभ से आ ओस
देने चुंबन
16
पुष्प की पीड़ा
डाल पर था खिला
तोड़ क्या मिला ?
20
प्रेम-बन्धन
टूटे न रखना ध्यान
ये अरमान
21
ओस-चुंबन
डाली से लिपटते
पुष्प लजाते
22
मन वीरान
क्या रेत से रिश्ते थे
जो ढह ग ?
23
व्यर्थ ही अड़ा
पाषाण वो, रे मन
तू कच्चा घड़ा
24
मन के घाव
ज्यों भरने को आते
कुरेदे जाते
25
धुँए के छल्ले
चाय-प्याला छुड़ा
शीत-फंद से
26
छोड़ो लिहा
चाय चुस्की लगाएँ
शीत भगाएँ
27
खौलती चाय
हुआ गर्म पारा है
शीत हारा है
28
सुनो प्यारी माँ
बना दो चाय पी लूँ
घूँट अमृत
29
ज्यों नन्ही परी
समय-अंक बैठी
है जनवरी
30
पहला मास
जनवरी ले आ
जीवन आस
31
रूप-किरण
तू आया लगा घर
जगमगाने
32
वसंत ऋतु
पहन पीत वस्त्र
सज ग भू

 

-0-

कविता

Monday, January 11, 2021

1041

 अनिता मंडा

1

परिभाषाएँ प्रेम की, गई अधूरी छूट।

खिलता जिस पर पुष्प-मन, डाल गई वो टूट।।

2

पाखी तिनके खोजते, कहाँ बनाएँ नीड़।

जंगल हैं कंक्रीट के, दो पायों की भीड़।।

3

नीड़ बनाया था जहाँ, कहाँ गई वो डाल।

वाणी तो अब मौन है, नज़रें करें सवाल।।

4

ओढ़ चाँदनी का कफ़न, सोई काली रात।

अपने मन को तो मिली, चुप्पी की सौगात।।

5

चुप्पी हमने साधकर, कर डाला अपराध।

प्यासा हर पल रक्त का, समय बड़ा है व्याध।।

6

बंद पड़ी सब खिड़कियाँ, खुले न रोशनदान।

अवसादों के जाल से, मन का घिरा मकान।।

7

बादल घिरते देखकर, चिड़िया है बेहाल।

जिन शाखों पर घोंसला, रखना उन्हें सँभाल।।

8

बालकनी में हैं रखे, कितने मौसम साथ।

यादों वाली चाय है, हाथों में ले हाथ

9

दुख गलबहियाँ डालकर, चलता हर पल साथ।

याद नहीं किस मोड़ पर, छोड़ चला सुख हाथ।।

10

सदियों से होता नहीं, लम्हों का अनुवाद।

यादों की धारा बहे, मन सुनता है नाद

Saturday, January 9, 2021

1040

 सीमा सिंघल 'सदा'

 1

 

2-मैंने कब कहा?

डॉ . महिमा श्रीवास्तव

 मैंने कब कहा

मैं तुम्हारी बहुत कुछ हूँ

यह भी ना कहा

कि कुछ तो हूँ

फिर क्यों मुझे कहा

तुम कौन?

मैंने कब कहा

मुझे अपना आकाश दो

या अपने हिस्से की

छाया ही दो

फिर क्यों मेरे पाँव तले की

ज़मीन खिसका ली गई?

मैंने कब कहा

मुझे याद तुम करो

या मुस्कुराने का बहाना दो

फिर क्यों आँसुओं की

बिन माँगी सौगात दी।

-0-

पता: 34/1, सर्कुलर रोड, मिशन कंपाउंड के पास, झम्मू होटल के सामने,     अजमेर( राज.)- 305001

Mob.no. 8118805670

 Email: jlnmc2017@ gmail.

 

Tuesday, January 5, 2021

1039

 

 दोहे

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1

रिश्ते- नाते  नाम केबालू की दीवार

आँधी बारिश में सभी, हो जाते बिस्मार।

2

रिश्तों में बाँधा नहीं, जिसने सच्चा प्यार

जीवन- सागर को किया, केवल उसने पार।

3

सारी कसमें खा चुके, बचा नहीं कुछ पास।

जो फेरों का फेर था, तोड़ दिया विश्वास।

4

जीवनभर  रहते रहे, जो- जो अपने साथ

बहती धारा में वही , गए छोड़कर हाथ।

5

मौका पा चलते बने, अवसरवादी लोग।

जीवन भर को दे गए, दुख वे छलिया लोग।

6

नीड तोड़ उड़ते बने, कपट भरे वे बाज।

बैठा सूनी डाल पर, पाखी तकता आज।

7

होम किए रिश्ते सभी, मन्त्र बने अभिशाप।

कर्म किए थे शुभ यहाँ, वे सब बन गए पाप।

8

दारुण दुख देकर हमें, तुम पा जाओ चैन।

शाप तुम्हें देंगे नहीं, दुआ करें दिन रैन।

9

सचमुच सब तर्पण किएसप्तपदी सम्बन्ध।

बहा दिए हैं धार में, धोखे के अनुबंध।

10

दुख में तपता छू लिया, मैंने जिसका माथ।

आँधी में, तूफ़ान में, वही बचा अब साथ।

11

क्या माँगूँ अपने लिए, यह सोचूँ दिन -रैन।

प्रियवर मैं तो माँगता, तेरे मन का चैन।

12

तेरा दुख पर्वत बना, हटे न तिलभर भार।

दर्द बाँट लें दो घड़ी, देकर निर्मल प्यार।

13

अधर तपे हैं दर्द से,घनी हो गई प्यास।

मधुरिम रस उर से झरे, तुम जो बैठो पास।

14

मन से मन के तार को, देते हैं सब तोड़।

जुड़ता केवल है वही, जिसकी दुख से होड़।

-0-