पथ के साथी

Monday, July 25, 2011

सूरज अभी निकला है



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

जीने के लाखों हैं , मरने के हज़ारों हैं
सूरज अभी निकला है ,क्यों सोचें मरने की ।
जीवन के द्वारे पर ,कभी भीख नहीं माँगी
गर मौत भी आ जाए ,ये बात न डरने की ।
क्या उनको समझाना , जो अक्ल के दुश्मन हैं
नहीं सोचें कभी बातें ,उनको खुश करने की ।
जिस देश न जाना था , वह बाट नहीं पकड़ी
हमने ना कभी सोची, रीता घट भरने की
जिनके सन्देशों ने ,जीवन था दिया हमको
बख़्शीश उन्हें क्यों दें , बीहड़ में विचरने की ।
जीने की तमन्ना है कि  मरने नहीं देती
उनकी  तो रही फ़ितरत  अंगारे  धरने की ।
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[चित्र गूगल से साभार]