1-आदर्श स्त्री/ मंजूषा मन
हर ख़्वाहिश के साथ
थोड़ा मर जाती है स्त्री।
स्त्री के भीतर का थोड़ा हिस्सा
हर बार मर जाता है,
ख़्वाहिश के मरने से।
ऐसे ही थोड़ा- थोड़ा मरकर
एक दिन
स्त्री पूरी मर जाती है।
फिर स्त्री में
कहीं नहीं बचती स्त्री।
रह जाती है बस
एक मिट्टी की गुड़िया
संवेदनाओं से रिक्त।
नहीं करती
किसी बात का विरोध,
नहीं रूठती कभी,
न कभी करती है जिद,
कुछ माँगती भी नहीं,
जो कहो सब करती है।
आदर्श स्त्री
समझी जाती है
मरी हुई स्त्री।
-0-
2-दोहे- रश्मि
लहर
1
पद की गरिमा के बने, झूठे दावेदार
प्रिय है मिथ्या चाटुता, मिथ्या ही सत्कार
2
गलियाँ सब सूनी पड़ीं, चौराहे भी शान्त
बच्चे गए विदेश में, ममता विकल नितांत
3
थाली के बैंगन सदृश, कभी दूर या पास
आखिर उनकी बात पर, कैसे हो विश्वास?
4
उनकी बातें चुभ रहीं, चुभता हर संदेश
पद- मद में जो चूर हैं, बढ़ाते वही क्लेश
5
करते वे अपमान हैं, खुद बनकर भगवान
याद न क्यों रहता उन्हें? समय बड़ा बलवान
6
संस्कृति निर्वसना मिली, उच्छृंखल परिवेश
बच्चों को भाता नहीं, अब पुरखों का भेस
7
औरों की आलोचना, करते हैं भरपूर
आत्म-मुग्ध होते रहें, रख दर्पण को दूर
8
अवसादी फागुन मिला, चिंतित मिला अबीर
खूनी होली देखकर, व्याकुल हुए कबीर
9
जर्जर होते पट मुँदे, घर सूना दिन- रैन
है खंडहर होता भवन, ढहने को बेचैन
-0-इक्षुपुरी कॉलोनी लखनऊ-2 उत्तर प्रदेश