पथ के साथी

Tuesday, August 11, 2020

1022-कान्हा की पालकी

 1- बहुत याद आती है  बचपन की वो जन्माष्टमी।

कमला  निखुर्पा

 कभी राधा कृष्ण बनकर

छुओ मत श्याम मेरी गगरिया गीत में नाचना 

कान्हा की  पालकी के साथ साथ चलना 

हाथी घोड़ा पालकी 

जय कन्हैया लाल की जयकारे लगाना।

 

 बरबस ही आँखों में छा जाती है नमी।

बहुत याद आती है  बचपन की वो जन्माष्टमी।

 

 मंजीरा बजाते हुए रातभर  कीर्तन करना

ठीक बारह बजे आरती में शामिल होना ।

 

आरती के थाल में जलते दिए की लौ को छूकर माथे से लगाना ।

फिर नन्हे- से सिक्के के खजाने को 

थाल  में अर्पित करना ।

 

यू/ण लगता कि मुस्काते कान्हा की आँखें हम पे ही है जमी ।

बहुत याद आती है  बचपन की वो जन्माष्टमी।

 

अब न जाने किसकी लगी न 

त्योहार आया और चला गया किसे खबर

 

हमने तो जिया  है अपनापन भरा बचपन 

त्योहारों की खुशियाँ 

पकवानों की खुशबू 

आस्था का हिंडोला 

गीतों का मेला 

 

हमने तो पाया है

बड़ों का आशीष

छोटों का प्यार 

आँचल का दुलार 

मीठी फटकार

 

 

पर क्या 

ये नई पीढ़ी 

सिमट कर रह जाएगी 

बस एक व्हाट्सएप्प के संदेश में ??

 

सच बहुत याद आती है 

बचपन की जन्माष्टमी ।

-0-(11 अगस्त 2020)

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2-मुरली की तान

 शशि पाधा 

1

बंसी ने जब जान ली, राधा- कान्हा प्रीत 

सुर दूजा साधे नहीं , और न गाए गीत।

2

ब्रज की भोली गोपियाँ, सुन मुरली की तान 

घुँघरू बाँधें पाँव में, अधर धरें मुस्कान ।

 

कनक रंग राधा हुई, कारे- कारे श्याम 

दोपहरी की धूप से , खेल रही यूँ शाम ।

 

राधा रानी गूँथती वैजन्ती की माल 

श्यामा पहने रीझते राधा लाल गुलाल ।

 

ऊधो से जा पूछतीं अपने मन की बात 

कान्हा ने विदेस से, भेजी क्या सौगात ।

 

यमुना तीरे श्याम ने, खेली लीला रास 

लहर-लहर नर्तन हुआ, कण-कण बिखरा हास ।

 

गुमसुम राधा घूमती, दिल से है मजबूर 

हर पंथी से पूछती, मथुरा कितनी दूर।

 

कोकिल कूजे डार पे, गाये मीठे गीत 

ढूँढे सुर में राधिका, बंसी का संगीत ।

 

सोचूँ जग में हो कभी, मीरा-राधा मेल 

दोनों सखियाँ खेलतीं, प्रीत-रीत का खेल 

 

पल छिन चुभते शूल से, क्षीण हुई हर आस      

कैसे काटे रात दिन, नैनन आस निरास                         

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