1-ये जो
आधापन है
ये जो आधापन है न..
मेरे अंदर, तुम उसे पूरा कर देना ,
ये अधूरापन, भाता नहीं है मुझे,
तुम्हें सोचने के अलावा
कुछ आता भी तो नहीं है मुझे ,,,
वो किरणों के बल लपेटे
सूरज- सी आभा लिये
मचल जाते हो न तुम मुझमें,
यकीन मानो ,बेहद खूबसूरत लगते हो,,,
और, जब कभी मुकम्मल चाँद
बनकर छा जाते हो ..मेरे वजूद पर,
आह्लादित मग्न होकर मैं..
झूमने लग जाती हूँ ....
पूर्णता के इस खूबसूरत , अनुपम
एहसास से फिर जीवंत होने लग जाता है
हमारा ये अटूट, पावन रिश्ता!
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2- पता नही चला मुझे
धूप- सी उतर गई पता नहीं
चला मुझे!
ज़िन्दगी गुज़र गई पता नहीं
चला मुझे!!
ढूँढते हैं
हर तरफ़ चिराग ले।के
गाँव में,
सादगी किधर गई पता नहीं
चला मुझे!!
झूठ बोलती ज़बान सच की खा रही कसम,
सत्यता सिहर गई
पता नहीं चला मुझे!!
मायके से लौट कर कभी -कभी विचार में,
याद कब पीहर गई पता नहीं
चला मुझे!!
जानवर- सा हो गया समाज किस क़दर ‘निधि’,
लोक लाज मर
गई पता नहीं
चला मुझे!!