पथ के साथी

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Monday, July 14, 2025

1473

1-ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

अनिता मंडा

 


 

ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

    मुझे नहीं पता

    कब से कर रही हो प्रतीक्षा

    फूलों की टोकरी उठाए

    होने लगी होगी पीड़ा

    तुम्हारी एड़ियों में

 

तुम्हारे उठे हुए कंधे

     कितना सुंदर बना रहे हैं तुम्हें!

 


ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

      मुझे नहीं पता

      फूल चुनते हुए

      तुम्हारी उँगलियों को

      छुआ होगा काँटों ने

      तुम्हारे गोदनों को

      चूम लिया होगा

       तुम्हारे प्रेमी ने

 

मुद्रा गिनते तुम्हारे हाथ

   कितना सुंदर बना रहे हैं तुम्हें!

 

ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

     मुझे नहीं पता

     तुम गई हो कभी देवालय

     इन मालाओं को पहनने को

     महादेव हो रहे होंगे आकुल

     एक-एक अर्क-पुष्प को

     धर लेंगे शीश

    

यह श्रद्धा का संसार

  कितना सुंदर बना रहा है तुम्हें! 

 

ओ फूल बेचने वाली स्त्री!

    तुम्हें नहीं पता

     तुम्हारे फूलों में

     मुस्कुराते हैं महादेव

     तुम्हारे परिश्रम में 

     आश्रय पाता है सुख

 

दारुण दुःख भरे संसार को

   कितना सुंदर बना रही  हो तुम!

-0-

2-दुःख नहीं घटता

अनिता मंडा

 

बहुत रो लेने के बाद भी

दुःख नहीं घटता

न पुराना पड़ता है

 


सोते-सोते अचानक

नींद के परखच्चे उड़ते हैं

स्मृति के बारूद

रह रहकर सुलगते हैं

 

बहुत रो लेने के बाद भी

हृदय की दाह नहीं बुझती

 

शब्दों के रुमाल सब गीले हो गए

घाव हरे रिस जाते हैं

 

चोट जब गहरी लगी हो

रूदन हृदय चीरकर निकलता है

 

सौ सूरज उगकर भी

अँधेरे की थाह नहीं पाते

 

गले में ठहरी रुलाई

खींच रही है गर्दन की नसें

 

मृत्यु का दिल 

एक कलेजे से नहीं भरता

वो रोज़ ही मेरा

लहू खींच रही है

-0-

 

 3-मंजु मिश्रा



-0-

Monday, February 18, 2019

881-दहशत का रास्ता


मंजु मिश्रा  

सरहदों पर यह लड़ाई
न जाने कब ख़त्म होगी
क्यों नहीं जान पाते लोग
कि इन हमलों में सरकारें नहीं
परिवार तबाह होते हैं

कितनों का प्रेम
उजड़ गया आज
ऐन प्रेम के त्योहार के दिन
जिस प्रिय को कहना था
प्यार से हैप्पी वैलेंटाइन
उसी को सदा के लिए खो दिया
एक खूँरेज़ पागलपन और
वहशत के हाथों

अरे भाई!
कुछ मसले हल करने हैं
तो आओ न...
इंसानों की तरह
बैठें और बात करें
सुलझाएँ साथ मिलकर
लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस
हैवानियत ही दिखानी है
तुम्हें इंसानियत से क्या वास्ता
तुमने तो चुन ही लिया है
दहशत का रास्ता ....
तुम्हारी मंज़िल तो केवल तबाही है।
-0-
मंजु मिश्रा 
#510-376-8175

Thursday, June 7, 2018

827-चुटकी भर संवेदना…


चुटकी भर संवेदना…
मंजु मिश्रा  ( कैलीफोर्निया)

हो सके तो खुद को इंसान बनाए रखिए
चुटकी भर संवेदना दिल में बचाए रखिए
**
यूँ तो ये, आज के दौर में ज़रा मुश्किल है
तो भी क्या हर्ज़ है खुद को आजमाए रहिए 
**
आज कल हालात हद  से  बदतर है
हर आस्तीं में सांप बगल में खंजर है
**
क्या पता कौन कहाँ दुश्मन निकल आए
खुद को हर वक्त, पहरे पे लगाए रखिए
 -०-

Friday, March 23, 2018

810

1-मै लिखती नहीं 
मंजु मिश्रा ( कैलिफ़ोर्निया)

मै लिखती नहीं
जीती हूँ 
अपने अहसास !
घूँट घूँट पीती हूँ
अपना आस-पास ...

बूँद भर ख़याल 
छलक छलक कर 
कब नदी बन गये 
पता ही नहीं चला !

और फ़िर
कागज की छाती पर 
दौड़ते भागते 
ये स्याही की नदी
कब समंदर बन गयी
ये भी कहाँ जान पाई मै !

मै तो बस 
अपने आप में गुम
अन्दर ही अन्दर 
तलाशती रही 
अपना वजूद
और रचती रही 
शब्दों के पुल 
जीवन पर करने को 
जो न जाने कब कविता बन गये.......

-0-
2-अब की
डॉ सुषमा गुप्ता

शाम ढले
पीछे आँगन में बिसरी चारपाई पर
यूँ ही अलसाए गुम थे
अरसे पुराना चाँद उतरा
मेरे घुटने पर ठुड्डी टिकाए बैठ गया ।
आँखें मुस्काईं
तो चाँद ने चश्मा उतार कर रख दिया मेरे आँचल पर
मैंने झट धुँधली कर ली आँखें अपनी
कहा..
बेज़ारी का  ख़त बाँचना छोड़ दिया कब का मैंने ...
जाओ महबूब
अब की आओ तो ज़िंदा आँखों के साथ आना ।
-0-
-     3-पूर्वा शर्मा
आज चन्द्र भी लजा रहा
लुक-छिप के वो रिझा रहा
प्रियतम से मिलकर है आया
तभी तो उस पल दिख ना पाया
प्रेम अगाध वो पाकर आया
रंग प्रीत का ऐसा छाया 
श्वेत वर्ण से हुआ है मुक्त
रक्तिम दिखे लाज से युक्त
पाकर प्रीत हुआ है पूर्ण
प्रकट हुआ है अब सम्पूर्ण ।
-0-रचना(31 जनवरी 2018)



Wednesday, March 21, 2018

809-काव्य -भूमिकाएँ


एक पाठक के तौर पर मैंने कुछ पुस्तकों की भूमिकाएँ लिखी हैं। उनके लिंक नीचे दिए गए हैं।   आशा करता हूँ कि जब भी समय मिले , ज़रूर पढ़ेंगे ताकि सृजन के समय जो कुछ अच्छा हो उसे ग्रहण किया जा सके। मेरे ये लेख  उबाऊ हो सकते हैं, फिर भी पढ़िएगा-  


Tuesday, February 20, 2018

801


कविताएँ-
3-ये गूँगी मूर्तियाँ-मंजु मिश्रा

ये गूँगी मूर्तियाँ
जब से बोलने लगी हैं
न जाने कितनों की
सत्ता डोलने लगी है
जुबान खोली है
तो सज़ा भी भुगतेंगी
अब छुप छुपा कर नहीं
सरे आम…
खुली सड़क पर
होगा इनका मान मर्दन
कलजुगी कौरवों की सभा
सिर्फ ठहाके ही नहीं लगाएगी
बल्कि वीडियो भी बनाएगी
अपमान और दर्द की इन्तहा में
ये मूर्तियाँ
फिर से गूँगी हो जाएँगी
नहीं हुईं तो
इनकी जुबानें काट दी जाएँगी
मगर अपनी सत्ता पर
आँच नहीं आने दी जाएगी
-0-
1- तुम्हारे सपनों में -मंजूषा मन

नींद में अधखुली पलक को
थोड़ा और ऊपर उठा
हो जाऊँगी शामिल
तुम्हारे सपनों में...

तुम किसी झाड़ी से तोड़ लेना
एक जंगली गुलाब,
मैं तुम्हें दूँ एक मुट्ठी झरबेरी के बेर,

थककर किसी झील के पानी में
मुँह धो मिल जाये ऊर्जा,
तमाम दिन झुलूँ झूला
तुम्हारी बाहों का..

एक पूरी रात
तुम्हारे सपने में 
जी लूं एक पूरा दिन
तुम्हारे साथ।
-0-
2. मंजूषा मन


सारे कसमें और वादे धरे रह गए ।
अश्क आँखों में मेरी भरे रह गए ।

जिस्म के जख्म तो थे गए फिर भी मिट,
रूह के जख्म आखिर हरे रह गए ।

उसके जुल्मो सितम का हुआ ये असर,
थोड़े ज़िंदा बचे कुछ मरे रह गए ।
-0-
3- ए राही !!!
डॉ.पूर्णिमा राय

ए राही !!!
मानव जीवन है अलबेला 
है हर इक इन्सान अकेला
चाहे नित नवीन मंजिल को
बीतती नहीं दुख की बेला!!
भास्कर नव किरणें फैलाता है
भँवरा फूलों पर मँडराता है
कुदरत का मधुरिम सौन्दर्य
जीवन उपवन महकाता है!!
मधुरिम रिश्तों की अभिलाषा
मन में जगाती नई आशा
डग भरता राही जल्दी से
छा ना जाये कहीं निराशा!!
सुख वैभव इकट्ठे करता है
आकाश उड़ाने भरता है
औरों को सुख देने खातिर
हरपल विपदाएँ सहता है!!
पत्तों की मन्द सरसराहट
पंछियों की सुन चहचहाहट
बीती बातों की स्मृतियों से
आए अधर पर मुस्कुराहट!!
-0-

Sunday, May 8, 2016

636


माँ
1-अनिता मण्डा
माँ के हैं मौसम कई, गुस्सा ,लाड़, दुलार।
खुद रो देगी डाँट कर, जब आएगा प्यार
-0-
2- सुशीला श्योराण
1
आले-खूँटी-खिड़कियाँ, चक्की-घड़े-किवाड़।
माँ की साँसें जब थमी, रोये बुक्का फाड़ ।।
2
सदा दुआ-सी साथ है, कब बिछड़ी तू मात।
आदत बनके साथ है, तेरी इक-इक बात ।।
-0-
3-अनिता ललित
1
ममता के सागर नयन,दिल में पीर अपार
माँ सा कोई ना मिला, धरती-अम्बर पार।।
-0-
4- डॉ०कविता भट्ट
1
स्वयं काँपती रही ठंड मे गरीब माँ मेरी
जहाँ गीला हुआ बिस्तर वहाँ खुद सोयी
मुझे गर्माहट दी जबकि उसका जीवन था
पूस की रात –सा पथरीला ठण्डा>
-0-
5-विभा रश्मि
1
माँ खुशी - गूँज
भोर से रात्रि तक
प्रतिध्वनित होती
कहीं भीतर
प्रेम से वो सींचती
जिला देती बेटी को ।
-0-
6-दुआ- मंजु मिश्रा
1
माँ हो न हो
उस की दुआ
बंधीं रहती है
ताबीज सी 
बच्चों के साथ 
2
जरा भी
उदास हुआ तो
इक प्यार भरी
थपकी लगा देती है
माँ की याद !!
-0-
7-मीठी सी याद-सुदर्शन रत्नाकर

मीठी सी याद
अब भी भीतर है
कचोटती है
ठंडे हाथों का स्पर्श
होता है मुझे
हवा जब छूती है
मेरे माथे को।
दूर होकर भी माँ
बसी हो मेरी
मन की सतह में
माँ आँचल तुम्हारी
ममता की छांव का
नहीं भूलता
बड़ी याद आती है
जब बिटिया
मुझे माँ बुलाती है
जैसे बुलाती थी मैं।
-0-
-0-
8-माँ का आँचल- मंजूषा 'मन'

है सलामत मेरे सर पर,
माँ का आँचल जब तलक।
कैसी भी आएं मुश्किलें,
छू न सकेगी तब तक।

ग़म के साये रोज ही हैं,
आते मेरे सामने।
डर के सारे भाग जाते,
मेरी माँ के सामने।
देखते हैं मुश्किल जो ये
मुझे  सताए कब तलक।
है सलामत मेरे सर पर......

हर कदम पर मेरी माँ ने
हौसला मुझे है दिया।
मुझ पे जो आई मुसीबत
अपने सर पे ले लिया।
है दुआ माँ सँग ही रहे
ज़िंदा रहूँ मैं जब तलक।

है सलामत मेरे सर पर
माँ का आँचल जब तलक।

-0-