पथ के साथी

Wednesday, June 6, 2018

826-भोर के उद्गार


भोर के उद्गार
कमला निखुर्पा


मीलों दूर रहकर भी
भावसिंचित
नव सृजन पल्लवों से आँगन अंकुरित
वो मेघ हो तुम।

महक अपनेपन की
सोंधी-सोंधी -सी
जड़ों से जुड़ी है
अभी तक
संस्कारों की माटी
वो माली हो तुम ।

लेना कुछ भी नहीं
जाना बस
देना ही देना
पत्थर भी मारे कोई
तो पाता सुफल
वो वृक्ष रसाल हो तुम।

जो भी हो तुम
जानूँ मैं बस इतना ही
कि विगत जन्मों के
पुण्य फल हो तुम ।
नित जलकर
जगमग राहें कर  जाए
वो दीपक हो तुम ।
-०-