पथ के साथी

Tuesday, September 5, 2023

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 1-गुरु/ लिली मित्रा

 


गुरु बिना नहीं तर सके, तम सागर का छोर

कारे आखर जल उठे, उजियारा सब ओर।।

 

धर धीरज धन ज्ञान का, मिलती गुरु की छाँव

ज्यों पीपर के ठाँव में , बसे विहग के गाँव।।

 

ज्ञान मिले ना गुरु बिना, ज्ञान बिना ना ईश

सूने घट सा मन फिरे, बूँद-बूँद की टीस।

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2-योग और श्वास / मंजु मिश्रा


 

सुनो....

अब मैंने भी शुरू कर दिया है योग करना 

रोज सुबह , ‘प्राणायामकरते हुए मैं...

 जब साँसों का योग वियोग करती हूँ,

तो छोड़ती जाती हूँ  वे सारी साँसें,

जो तुमसे अलग होने के बाद महसूस करती थी।

और खींचती जाती हूँ वातावरण से

 वह सारी शुद्ध वायु, जो तुम्हारे सानिध्य की थी ,

अब बनने लगी है मेरी प्राण-चेतना ।

 

भरस्रिकाके माध्यम से झटके से फेंकती जाती हूँ

अंतस् में बसी सारी शिकायतें।

भ्रामरीकरते हुए गुँजा देती हूँ रोम- रोम को

तुम्हारी सुखद स्मृतियों से।

कभी कभी कुंभकलगाकर बैठ जाती हूँ ,

रुक जाती हूँ कुछ पलों में

 कुछ यादों को स्थिर कर लेती हूँ उन पलों में।

अचानक हाथ उठ जाते हैं,

कहते हैं मानो तुम भी तो हो यहीं कहीं इसी भूमंडल में ।

दोनों हाथ जोड़कर झुक जाती हूँ तुमको प्रणामकरने ।

 और फिर शांत निश्चेष्ट- सी पड़ जाती हूँ ‘शवासनमें

 एक बार फिर से अपनी सारी चेतना को तुम्हारी यादों से झंकृत करके

 जीने की एक नई आस लिये ...

अपनी साँसों में आत्मविश्वास और प्राणों में

अपनी और तुम्हारी चेतना का योगकरके।

-0-manjumishra67@gmail.com

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 3-गुरु / रश्मि लहर

  



बदल देते हैं जीवन-मूल्य,

विस्मृत कर देते हैं 

बड़ी से बड़ी भूल।

सुलझा देते हैं  मन का हर उलझा-भाव,

लुप्त हो जाते हैं जीवन के अभाव

जब मेरे पास होते हैं गुरु!

 

भले अदृश्य होते हैं

पर..

प्रतिपल विचारों को सहेजते हैं।

 

त्रुटियों का आकलन

वहम का निराकरण,

मृदुल स्वर से कर जाते हैं।

बनकर मार्गदर्शक..

साथ देते हैं गुरु!

 

निराशा की कल-कल बहने वाली 

नदी को,

हृदय का दम घोंटने वाली 

सुधि को,

छुपा लेते हैं अपने शिख पर,

आशा का अनमोल-अमृत 

बाँट देते हैं गुरु!

 

चुन-चुनकर अवसाद के कंकड़,

सुलभ-सहज कर देते हैं,

भावना का पथ।

 

विचारों के विस्थापित अंश हों या

टीस हो अपूर्ण रिश्तों की।

अनंत इच्छाओं का भार हो या..

असंतुष्टि हो अतृप्त-कामना की।

 

वेदना का प्रत्येक कण चुनकर,

जीवन के श्यामपट पर

संतुष्टि से सजी 

सकारात्मकता को,

छाप -देते हैं गुरु!

 

उनके साथ होने से मिलते हैं 

विस्मयकारी

अतुलनीय-अनुभूति के पल!

 

व्यस्तता के मध्य.. 

विचलित-मन की हर हलचल को,

वैचारिक -अवरोध के अपरिपक्व-संघर्ष को

संवेदित-ज्ञान से परे कर

स्नेह-आलंबन देकर

नव-प्रेरणा की अद्भुत आस होते हैं गुरु!

 

मेरी एकाकी-टूटन में 

शांति-दूत बनकर

सदैव मेरे पास होते हैं गुरु।

मेरे हर प्रश्न का जवाब होते हैं गुरु!

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 4-सावन/ अनिता मंडा

 


बाहें खोल तुम जीवन का स्वागत करोगे

सावन चला आएगा

जीवन को सावन की नज़र से देखना

खुशियों की बारिश पाजेब खनका देगी

 

तुम्हारी छतरी को चूमने 

सावन बूँद- बूँद हो जाएगा

बाहें फैला तुम छतरी को उड़ा देना

बूँदों के आँचल को लपेटे हुए झूमना

धरती की कोख आनंद से भर उठेगी

तुम्हारी हँसी-सा इंद्रधनुष देखो तो

आसमान की मुस्कान है ये

 

तुम रोज़ हँसी के पंख जमा करते जाना

एक दिन उड़ना सीखना

ये सपनीले दिन-रात

सपनों में रख कर

कहीं भूल मत जाना

 

झींगुरों की आवाज़ का साज़ बनाकर

रचना मीठी धुनें

कर्कश शोर से भरी है ये दुनिया

 

कोलाहल के बीच सुकून से सोने के लिए

रंग-बिरंगी गोलियाँ नहीं

सितारों की रुपहली अशर्फियाँ चाहिए

 

कड़वी जड़ी-बूटियों का अर्क हैं नसीहतें

कोई दुष्प्रभाव न करेंगी

बहुत ज़रूरी है

नए के साथ पुराने की जुगलबंदी

आषाढ़ के साथ सावन कितना सहज रहता है।

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5-प्रीति अग्रवाल

1-रोशनी

ऊँची इमारतों ने आज
फिर से मुँह चिढ़ाया है,
दिल की झोपड़ी में मैंने
एक दिया जलाया है।

इस दिए कि रोशनी में
दिख रहा ये साफ है,
रौंदके किसी को उठना
ज़ुल्म ये न माफ़ है।

जो दिख रहा है वो नहीं
सच्चाई के करीब है,
ईमान बेचकर जिया
असल में वो गरीब है।

जो पा रहे, जता रहे
जो खो रहे, छुपा रहे,
मोह, माया, साज़िशें
दलदल में धँसते जा रहे।

कब्र पर खड़ी इमारत
दरअसल है तार तार,
बदनसीबी पर मैं उसकी
खूब रोया ज़ार-ज़ार।

वो शर्मसार देखती
झुकी निगाह, लिये मलाल,
दिया मेरे मन का, रोशन
कर रहा है ये जहान!
-0-