पथ के साथी

Wednesday, February 5, 2014

चलो मीत

रामेश्वर काम्बोज  हिमांशु
बहुत रहे हो इस जंगल में
अब तो यारो चलना होगा ।
जिसको समझा शुभ्र चाँदनी
वह सूरज है, जलना होगा ।
सोच-समझकर सदा बनाई
हमने अपनों की परिभाषा
फिर भी खाई चोट उम्रभर
अब हर शब्द बदलना होगा।
सूरज ढलता और निकलता
इसी फेर में ढली उमरिया 
चलो मीत अब बाट पुकारे
हमको दूर निकलना होगा ।
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(25 दिसम्बर-2013)