पथ के साथी

Wednesday, January 29, 2020

950-यह पूछना फ़िजूल

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
दर्द कहाँ है यह पूछना फ़िजूल
पूछिए यह कि कहाँ नहीं है दर्द।
2
हम तो वफ़ा करके पछताए ताउम्र
उन्हें  बेवफाई का ज़रा मलाल नहीं।


चित्रःहिमांशु


3
कभी पूछना न झील  कि अब तक कहाँ रहा
डूबता जब दिल तुम्हारे पास आता हूँ।





4
चित्रःहिमांशु

ग़म न कर  कि  पत्ते सब गए हैं छोड़कर।
कल आएगी बहार सब लौट आएँगे।






चित्रःहिमांशु
5
सूख गए पर साथ नहीं छोड़ा है आज तक
बुरे दिनों के दोस्त हैं ,जाते भी तो कैसे
6
दुआओं का असर हो न हो यह तो मुमकिन
बद्दुआएँ मगर कभी पीछा न छोड़ती

Sunday, January 26, 2020

949


लहरा लो तिरंगा प्यारा
डॉ0 सुरंगमा यादव

देश है अपना सबसे प्यारा
इसकी माटी चंदन है
हर उपवन वृंदावन है
भारत माँ का उन्नत भाल
कहता सुन लो मेरे लाल !
धरती से अम्बर तक
लहरा लो तिरंगा प्यारा
शान देश की अमर रहे
सीना ताने वीर कहें-
शीश सुमन से कर दें अर्पित
चहुँ  दिशि गूँजे यह जय गान
लहरा लो तिरंगा प्यारा
समता अपना प्यारा मंत्र
दुश्मन का हम हर षड्यंत्र
पल में चकनाचूर करें
राष्ट्रभाव से मिलकर सारे
लहरा लो तिरंगा प्यारा
कण-कण में बसते हैं राम
सबसे प्यारा भारत धाम
नैसर्गिक सुषमा अभिराम
पंछी गाते हैं अविराम
लहरा लो तिरंगा प्यारा

Thursday, January 23, 2020

948


1-डॉ.पूर्णिमा राय

1
सहज भाव से सुख मिले,कब मनमाना रोज
बाहर काहे  ढूँढता ,भीतर ही सुख खोज।।
2
रिश्ते महकें फूल -से ,दिल में हो जब प्यार।
चंदन सी खुशबू मिले ,दूर अगर तकरार।।
3
भाई तेरे प्यार पर ,सौ जीवन कुर्बान।
माथे करती तिलक हूँ, पूरे हों अरमान।।
4
उजली-उजली धूप का, छू रहा एहसास
शीत लहर का आगमन ,प्रेम भरा विश्वास।।
5
नफ़रत की दीवार से,कैसे होगा पार।
पास नहीं जब प्रेम की, दौलत अपरंपार।।
-0-डॉ. पूर्णिमा राय, पंजाब
ईमेल :
drpurnima01.dpr@gmail.com
-0-
2-मंजूषा मन
1.
मोती जग को बाँटती, नन्ही -सी इक सीप।
उजियारे का मोल भी, नहीं माँगता दीप।।
2.
सारा जग हर्षा रहा, कलियों का यह नूर। 
पवन सुवासित कर रही, सुख देतीं भरपूर।।
3.
तृण-तृण पल-पल में रहें, मन में बसते राम।
पावन सब संसार से, राम तुम्हारा धाम।।
4.
सूरज कोने में छुपा, बैठा होकर शाँत।
सकल जीव ठिठुरे फिरें, सबके मन हैं क्लांत।।
5.
हिम कण बन गिरने लगी, हाड़ जमाती शीत।
शीतल तरल बयार भी, गाए ठिठुरे गीत।।
6.
सूरज कोने में छुपा, बैठा होकर शाँत।
सकल जीव ठिठुरे फिरें, सबके मन हैं क्लांत।।
-0-
3-सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)
1
आसमान है सज रहा, तारों की बारात ।
पवन मगन हो नाचता, लहरें देतीं साथ ।।
मानव -जीवन बुलबुला, चार दिनों का खेल ।
बात प्रेम की बोलिए, कर लो सबसे मेल ।।
3
 धर्म- दया सबसे बड़े , कर सबका उपकार ।
गा न दुःख कभी,  नाव लगेगी पार ।।
4
पंख लगा कर प्रेम के, ऊँची  भरो उड़ान ।
वैर- द्वेष न संग धरो, होगा तेरा मान ।।
5
लेकर कुंजी प्यार की, खोलो मन के द्वार ।
साफ़ करो सब मैल को, करो दिल से बाहर ।। 
 सरिता देती ही रही, चलने की ही सीख ।
 पालन इसका जो करे,  माँगे ना वो भीख ।।
7
राम नाम मुख से कहें, फिर भी करते घात ।
मंदिर गिरिजा बैठके , चुगली करते साथ ।।
8
कल -कल पानी बह रहा ,झरने करते शोर ।
सावन की बरसात में , बगिया  नाचे मोर ।।
9
डगमग करती नाव भी ,पार लगाती छोर ।
नाविक बैठा देखता , सुख से तट की  र ।।
  -0- ईमेल : savita51@yahoo.com

4-शशि पुरवार 
1
तन को सहलाने लगी, मदमाती- सी धूप
सरदी हंटर मारती,हवा फटकती सूप 
2
दिन सर्दी के आ गए, तन को भा धूप
केसर चंदन लेप से, ख़ूब निखरता रूप  
3
पीले पत्रक दे रहे, शाखों को पैगाम
समय चक्र थमता नहीं, चलते रहना काम
4
रोज कहानी में मिला , एक नया किरदार
सुध -बुध बिसरी जिंदगी, खोजे अंतिम द्वार
5
क्या जग में तेरा बता ,आया खाली हाथ
साँसो की यह डोर भी, छोडे तन का साथ 
6
तन्हाई की कोठरी , यादें तीर कमान
भ्रमण करे मन काल का, जादुई विज्ञान 
7
जीवन के हर मोड पर, उमर लिखे अध्याय
अनुभव के सब खुश रंग, जीने का पर्याय 
8
जहर हवा में घुल गया, संकट में है जान
कहीं मूसलाधार है, मौसम बेईमान   
9
तेवर तीखे हो गए, अलग अलग प्रस्ताव
गलियारे भी गर्म हैं, सत्ता के टकराव
 10
रोज समय की गोद में, तन करता श्रम दान
मन ने गठरी बाँध ली, अनुभव के परिधान
11
नजरों से होने लगा, भावों का इजहार 
भूले -बिसरे हो गए, पत्रों के व्यवहार  
12
तनहाई डसने लगी, खाली पड़ा मकान
बूढी साँसें ढूँढती , जीने का सामान
-0-
       
                                          

Wednesday, January 22, 2020

947


 1-नदिया जैसी रात -शशि पाधा 
1
नीले नभ से ढल रही, नदिया जैसी रात
ओढ़ी नीली ओढनी,चाँदी शोभित गात
 2
श्यामल अलकें खोल दीं, तारक मुक्ताहार
माथे सोहे चन्द्रिमा,चाँद गया मन हार
 3
सागर दर्पण झाँकती,अधरों पे मित हास
लहरें हँसती डोलतीं, नयनों में परिहास
 4
छम-छम झांझर बोलतीं,धीमी -सी पदचाप
पात-पात पर रागिनी,डाली-डाली थाप
 5
मंद- मंद बहती पवन,मंद्र लहर- संगीत
रजनीगंधा ढूँढती,तारों में मनमीत
 6
ओट घटा के चाँद था,रात न आए चैन
नभ, तारों में ढूँढते,विरहन के दो नैन
 7
चंचल चितवन चातकी,श्याम सलोनी रात
चंदा देखें एकटक, दोनों बैठी साथ
 8
श्वेत कमलिनी झील में,रात सो गई संग
लहरों में घुल -मिल गए,नीलम-हीरा रंग
 9
भोर पलों में भानु ने,मानी अपनी भूल
धरती की  झोली भरे ,पारिजात के फूल
-0-
2-कृष्णा वर्मा
1
बीते कल के सबक से ,सीखा क्या नादान
आज वही करने लगा, सहने को अपमान।
2
अपने कब अपने रहे, प्रेम हुआ है सर्द
मन की मन में ही रही ,किसे बताते दर्द।
3
पत्थर दिल पिघले नहीं, होता बड़ा कठोर
समय गँवाना क्यों भला, तोड़ो उनसे डोर।
4
दिल की धड़कन की तरह , मन में रहते आप
भक्त और भगवान-सा , है रिश्ता निष्पाप।
5
जिनकी ख़ातिर मैं सदा ,करता रहा प्रयास
धोखा उनसे ही मिला ,जिनसे थी सुख -आस।
6
वही हराते हैं सदा ,हो जिन पर अभिमान
दिल को चकनाचूर कर, दे जाते अपमान।
7
भीतर-भीतर घुट मरा ,मुख न पाया खोल
सुधा समझ दुख  पी लिया ,रिश्ता था अनमोल।
8
बीती जो मन पर सदा ,वह समझेगा कौन
धर जिह्वा  दाँतों तले , बैठे हैं हम मौन।
9
जिनको अपना जानकर, रखते  थे सद्भाव
बेरहमी से दे गए ,वे ही गहरे घाव।
10
क़दम बढाते वक़्त तुम ,बस रखना यह ध्यान
जिसको समझा मीत है, क्या उसकी पहचान।
-0-
3-अनिता मंडा
1.
मल्लाहों के पास है, कश्ती बिन पतवार।
हमें दिखाएँ ख़्वाब वो, कर लो दरिया पार।।
2.
होठों पर हैं चुप्पियाँ, भीतर कितना शोर।
सूरज ढूँढे खाइयाँ, कैसे भोर।।

3
परछाई है रात की, बुझी-बुझी सी भोर।
उजियारे के भेष में, अँधियारे का चोर।।
4
जुगनू ढूँढें भोर में, पतझड़ में भी फूल।
कुदरत के सब क़ायदे, लोग गए हैं भूल।।
5
प्रतिलिपियाँ सब नेह की, दीमक ने ली चाट।
पांडुलिपि धरे बैर की, बेच रहे हैं हाट।।
6
सूनी घर की ड्योढियाँ, चुप हैं मंगल गीत।
जाने किस पाताल में, शरणागत है प्रीत।।
7
आसोजा री पूर्णिमा, शरद चाँदनी रात।
बरसे इमरत नेह का, सुंदर यह सौगात।।
8
चखा धतूरा धर्म का, खोया होश-विवेक।
मानव मन जो एक थे, बिखरे बने अनेक।।
-0-

Tuesday, January 21, 2020

946-दोहे


दोहे
 1-अनिता ललित                         
1
तुम बिन कुछ भाता नहीं, टूटी मन की आस।
लगती फीकी चाँदनी, आँखें बहुत उदास।।
2
रिश्तों की बोली लगे, कैसा जग का खेल
मतलब से मिलते गले,, भूले मन का मेल।।
3
रिश्तों की क़ीमत यहाँ, जिसने समझी आज
दुख उसके बाँटें सभी, पूरे होते काज।।
4
छोटे पंख पसार कर, उड़ने की ले आस
दाना बिखरा न मिला, चिड़िया आज उदास।। 
5
कितना भी हँस लीजिए, छिपे न मन की पीर
सहरा होठों पर ढले, अँखियन छलके नीर।।  
6
छह-छह बच्चे पालते, मात-पिता क संग
बूढ़े हों माँ-बाप जब, बच्चे होते तंग।।
7
मैंने तो चाहा सदा, पाऊँ तेरा साथ 
तूने क्यों हर पल छला, छोड़ा मेरा हाथ।।
8
फूल कहे 'ना त्यागि!', ये काँटों का हार  
अपनों का उपहार ये, इस जीवन का सार।।
9
अपनों ने कुछ यूँ छला, छीना प्रेम-उजास। 
अश्कों में बहने लगी, मन की हर इक आस।।
10
सुख-दुख के ही ख्रेल हैं, क्या अवसर, क्या मोड़
अपने ही हैं बाँधते, अपने देते तोड़।।
-0-
2-डॉ.सुरंगमा यादव
1
कहना था हमको बहुत, ढूँढे शब्द हजार।
बात जुबाँ पर रुक गई,देखो फिर इस बार।।
2
मिलन खुमारी थी चढ़ी,अलसा थे नैन।
झकझोरा   दुर्दैव ने ,स्वप्न झरे बेचैन।।
3
कपट, बुराई ना छिपे, कितने करो उपाय।
जल में बैठी रेत ज्यों,हिलते ही उतरा।।
4
दर्द दिया तुमने हमें,किया बहुत उपकार।
गिरकर उठने की कला,सिखा गए दिलदार।।
5
बाधाओं से   हारते ,कर्महीन  इंसान ।
अथ से पहले अंत का,कर लेते अनुमान।।
6
सुगम राह ही चाहता,मन कैसा नादान।
लंबी दूरी देखकर , भरता नहीं उड़ान।।
7
खूब दिखा जिंदगी, नखरे और गुरूर।
चल देती मुँह फेरकर,पल में कितनी दूर।।
8
मीठा-मीठा बोलकर, दे दी गहरी चोट।
शब्द आवरण में ढका,मन का सारा खोट।।
9
मन आँगन में रोप दो, प्रेम-दया की बेल।
कटुता मिट जा सभी ,बढ़े परस्पर मेल।।
10
धूप सयानी हो गई, बचपन में ही खूब।
गरमी की देखो हनक ,सूखी जा दूब।।
-0-
3-मंजूषा मन
निशदिन खोजा आपको, थामे मन का छोर।
रहे  हृदय  से   दूर  जबभीगे  नैना -कोर।