दोहे
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
गर्म तवे पर बैठकर, खाएँ कसम हज़ार ।
दुर्जन सुधरें ना कभी, लाख करो उपचार॥
2
चाहे तीरथ घूम लो, पढ़ लो वेद,
पुराण ।
छल -कपट मन में भरे, हो
कैसे कल्याण ॥
3
वाणी में ही प्रभु बसे, मन में कपट- कटार ।
लाख भजन करते रहो, जीवन है बेकार ॥
4
आचमन कटुक वचन का, करते जो दिन -रात ।
घर -बाहर वे बाँटते, शूलों की सौगात ॥
5
उऋण कभी होना नहीं, मुझ पर बहुत उधार।
कभी चुकाए ना चुके, इतना तेरा प्यार॥
6
जीवन में मुझको मिले, केवल तेरा प्यार ।
जग में फिर इससे बड़ा, कोई ना उपहार॥
7
श्वास -श्वास प्रतिपल करे, इतना सा आख्यान।
जीवन में हरदम मिले, तुम्हें प्यार सम्मान.
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