पथ के साथी

Saturday, February 19, 2022

1187- देवता ऐसे नहीं होते

 रश्मि विभा त्रिपाठी 


देवता दोगले नहीं होते


कि प्रथम दर्शन- बेला पर 

मधु मुस्कान के मोती लुटाएँ 

फिर हँसी की केंचुल उतारें 

बड़ा- सा अजगरी फन उठाएँ,


देवता लालची नहीं होते

मन्दिर में भाव की भेंट 

करते आए हैं स्वीकार 

भक्तिन से नहीं माँगते 

नकद पैसे, बंगला व कार


देवता नहीं देते 

शरणागत को यातना 

वे तो सदैव हरते हैं 

उसका दुख- संताप घना 


देवता नहीं करते 

दानवों- सा व्यवहार 

कि मारें, पीटें

घसीटकर देहरी के पार 

पटक दें मरने के लिए 



देवता बोलते ही नहीं 

मुँह से एक भी अपशब्द 

कि आँखों से उमड़े पश्चाताप

आस्था रह जाए स्तब्ध


देवता झूठे- मक्कार नहीं होते

कि मानवता माटी में मिला दें

अपना ईमान गिराकर 

सत्य को झूठ का गरल पिला दें



देवता आततायी नहीं

जो बनें कारण विध्वंस का

निरीह को ले जाए मृत्यु की ओर

परिणाम उनके दिए दंश का 


देवता भोगी- विलासी नहीं होते

कि एक को जी चाहे तब तक नोचें

फिर कामुकता- पूर्ति हेतु

अगले शरीर को पाने की सोचें 


देवता अपराधी नहीं होते 

कि तोड़ दें जीने की उमंग

भक्तिन को कर अपंग 

फिर अदालत में जमाएँ अपना रंग 


देवता नहीं होते 

दशानन- से अहंकारी

कि रचना उजाड़ दें 

अपने ही हाथ से सँवारी


देवता नहीं होते हत्यारे

कि पौंछ दें माँग का सिन्दूर

अपनी विधवा भक्तिन पर 

दिखाएँ निर्ममता भरपूर



देवता भूखे- नंगे नहीं होते

कि जिसके टुकड़ों पर जिएँ 

उसका सर्वस्व चाहें भीख में 

नहीं मिले, तो खून पिएँ। 


देवता नहीं होते निर्बुद्धि

भली-भाँति करते हैं गृह- प्रबंधन

नहीं तोड़ते नश्वर पदार्थ के लिए

जन्मों का पवित्र- बंधन


देवता शिकारी नहीं होते 

कि किसी को जाल में फँसाएँ

कतर दें पंख सारे

उड़ान पर प्रतिबंध लगाएँ 


देवता कायर नहीं होते 

कि जग- जंगल में शरणागत को 

भेड़ियों के हवाले छोड़ें 

निज उत्तरदायित्वों से मुँह मोड़ें


देवता तानाशाह नहीं होते 

कि कुचल दें शरणागत की इच्छाएँ

उच्छृंखलता का पट्टा बाँध गर्दन में

उसे निर्जला धूप में नंगे पाँव दौड़ाएँ

रुकें तो पीठ पर कोड़े बरसाएँ 


छि:! देवता ऐसे कभी नहीं होते


स्त्री! तूने किस आधार पर 

पति की प्रजाति को

परमेश्वर घोषित किया है 

मानव के धर्म- आचरण को

क्या उसने तृण-मात्र भी जिया है

यदि हाँ!

तो हे सौभाग्यवती! 

तू लीन रह

उसकी आराधना में आमरण 

हर जनम में माँग उससे उसका ही वरण

वह भी किंचित चाहे न अन्यान्य वस्तु

एवमस्तु! एवमस्तु! एवमस्तु!