पथ के साथी

Monday, May 30, 2022

1215-दोहे-कुण्डलिया

 डॉ. गोपाल बाबू शर्मा

1

अँधियारा गहरा हुआ, फैला कहाँ उजास।

नहीं मौन को स्वर मिला, नहीं रुदन को हास

2


अभी राजसी ठाट का
, कहाँ हुआ है अन्त

पतन, पाप, पाखण्ड में, मस्त नए सामन्त।

3

चमक-दमक के दौर में, कौन करे पहचान

आज काँच को मिल रहा, हीरे का  सम्मान।।

4

सच सौ ऑसू रो रहा, झूठ मनाता मोद।

सौदागर ईमान का, बैठा सुख की गोद॥

5

मूल्य-हीन घोड़े हुए, हाथी फाकें धूल।

गदहों पर पड़ने लगी, अ रेशम की झूल ।

6

तृण औरों की आँख में, देखें, बनें कबीर

दिखे न अपनी आँख का, लोगों को शहतीर।।

7

पहन रही हैं आजकल, रातरानियाँ ताज।

आँगन की तुलसी मुई, हुई उपेक्षित आज

8

पात्र, कथा, उद्देश्य अब, बदल गए संवाद।

भूल शहीदों को गए, रहे शोहदे याद

9

द्वार बँटे, आँगन बँटे, बँटा हृदय का प्रेम ।

चूर-चूर दर्पन हुओं, सिर्फ़ रह गया फ़्रेम

10

घर पर यदि छप्पर नहीं, रिक्त उदर का कोष।

चौराहे की मूर्तियाँ , क्या देंगी सन्तोष ।

 

11

दंगे - दंगल हर ज, आया जंगल - राज

मगल की बातें कहीं, शनि के सिर पर ताज

12

नागफनी को क्यों रहे, फूलों की दरकार।

वह तो निशिदिन शोभती, कॉटों से कर प्यार।।

13

दोष किसी का, और को, मिलता है अंजाम।

सागर खुद खारा मगर, प्यास हुई बदनाम।।

14

सुन्दर योग्य सुशील वर, वही आज कहलाय |

जिसकी वेतन से अधिक, हो ऊपर की आय।।

15

बदनीयत संसार में, खूब रहे फल - फूल।

जिसकी नीयत नेक है, उसको यह जग शूल।।

16

धन है तो तू चौथ दे, कहे माफिया. राज।

वर्ना मारा जायगा, कोई. नहीं इलाज॥

17

आस्तीन में साँप अब, सन्तों के घर चोर।

भोलापन. गूँगा हुआ, छल-प्रपंच मुँहजोर

18

संकट में फिर द्रौपदी, लाज बचाए कौन।

मनमानी कौरव करें, कान्हा साधे मौन।।

19

जीते जी जिसके लिए, लोग बिछाते खार।

उसके शव को पूजते, चढ़ा पुष्प के हार।।

20

गज से ज़्यादा कीमती, हुए आज गजदन्त।

श्रद्धा-आदर पा रहे, छैल चिकनियाँ सन्‍त।।

21

आम आदमी पिस रहा, खास मारते मौज।

कहीं 'पूर्णमासी मने, कहीं न दीखे दौज।।

22

बगुले पाते हैं यहाँ, बार - बार सम्मान।

हंस उपेक्षित ही मरें, अपना देश महान्‌।।

23

जिनके मन में खोट हैं, वे ही बने कहार।

रह पाए महफूज क्यों, डोली आखिरकार।।

24

लोगों ने छल-धर्म से, खूब बनाए ठाठ।

रावणवंशी कर रहे, रामायण का पाठ

25

कथनी-करनी में दिखे, आज हर जगह भेद

चलनी परखे आचरण, लिए बहत्तर  छेद।।

-0-

2-डॉ.उपमा शर्मा

आया नभ वो छा गया,बादल करे कमाल।


रिमझिम-रिमझिम वो करे, नाचे दे- दे ताल।

नाचे दे दे ताल, सुर सभी मिलकर साधें।

होती दिन में रात, सूर्य अब बस्ता बाँधे।

ठंडी चले बयार, गीत दादुर ने गाया।

उपमा हो मन- मुग्ध, गगन जब बादल आया।