पथ के साथी

Tuesday, May 19, 2020

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 [ पिछले कुछ दिनों से मैं  कोविड 19  के  कारण एक क्वारेंटाइन सैंटर पर  कार्यरत हूँ । अन्य कोरोना वारियर्स की तरह वर्तमान हालात का सामना करते हुए मन में जो भाव उपजे उनसे जो गीत रचना हुई है वह सादर प्रेषित है।]
-परमजीत कौर 'रीत'

एक आहुति अपनी भी है

महासमर के महायज्ञ में
कण-कण अपना तोल रहीं हैं
एक आहुति अपनी भी है
सब समिधाएँ बोल रही हैं

वन में अब भी शिखी नाचते!
वहाँ भला देखेगा कौन
कोयल को आदेश मिला तो
पावस में तज डाला मौन
और जिजीविषा की चिड़ियाँ 
ये सभी रहस्य खोल रहीं हैं
एक आहुति अपनी भी है
 सब समिधाएँ बोल रही हैं
महासमर के महायज्ञ में
कण-कण अपना तोल रहीं हैं


दावानल का यह समय तो
निज से ऊपर उठने का है
रे ! हिम-पंछी वृक्ष के हित में
अवसर आज पिघलने का है
तो क्या, जो समकाली सिन्धु में 
मन नौकाएँ डोल रहीं हैं
एक आहुति अपनी भी है
 सब समिधाएँ बोल रही हैं
महासमर के महायज्ञ में
कण-कण अपना तोल रहीं हैं
-0-श्री गंगानगर