1-जब आएगी बहार
-अनिता ललित
दे देते हैं रस्ता
चुपचाप झड़कर-
नव-कोंपलों को!
एक बरबस उम्मीद लिये.
जब आएगी बहार
याद करेंगे उन्हें भी,
उनकी ख़ामोश क़ुर्बानियों को!
कि झड़ना नियम है-
प्रकृति का!
मगर-
भूलना तो नहीं।
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2-यह जान लिया
-भावना
सक्सैना
तुमने मुझको बाँध लिया है;
नैनों में था स्नेह का सागर
प्रणय भरा विश्वास दिया है।
इस दुनिया के रंग अनोखे
पग -पग
पर कितने हैं मौसम;
पल -पल
रंग बदलते जग में
स्थिरता का आभास दिया है।
देह दास प्यासे श्वासों की
आते -जाते
भटका करती है;
आती -जाती
हर साँस को
तुमने सुख सायास दिया है।
ख्वाब मेरे अपनाये हरदम
पंख दिए खुलकर उड़ने को
मेरी हर उड़ान को तुमने
नित नूतन उल्लास दिया है
पंख न अब फैलाना चाहूँ
जीवन बस बाँहों में तेरी
बंधन में भी सुख असीम है
मैंने बस यह जान लिया है।
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3-यादों के द्वारे
-भावना सक्सैना
यादों के द्वारे
पलड़े नहीं हैं,
चली आती हैं
बेसबब सर उठाए ।
कभी नर्म रेशम -सी
सहलाएँ मन
को,
कभी दर्द का
घन दरिया बहाएँ।
कभी बीच बाज़ार
उड़ती -सी
खुशबू,
बहा ले जाए
किसी ही जहाँ में।
जगाएँ कभी
नींद से
बनके सपना,
उठा ले जाएँ
अनोखे जहाँ में।
एहसास मधुर
बीती ज़िन्दगी का,
बना दें सुखद
हर दिन, जो
अब आए।
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4-आ ओढ़ लें गम
–
भावना सक्सैना
आ ओढ़ लें ग़म
फिर से एक बार
बहा लें
दो बूँद अश्कों की,
कि कई रोज़ हुए
कोई सहलाने नहीं आया।
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5-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जिसने दर्द जिया है पल -पल
वह दर्द दूर से जान गया,
नदिया लेकर पीर बही थी
यह सागर
भी पहचान गया ।
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