पथ के साथी

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Tuesday, July 4, 2023

1341-संस्मरण

केरी के गोले

 अंजू खरबंदा

 


कोई दस ग्यारह बरस की रही हूँगी मैं, उस समय गैस चूल्हा नहीं हुआ करता था घरों में । होता भी होगा तो मुझे मालूम नहीं । हम लोग खाना पकाने के लिये अँगीठी का उपयोग किया करते थे । उसमें कोयले डालकर उसे जलाया जाता था।

कोयले लाने के लि मैं भी कई बार पापा जी के साथ कोयले की टाल पर जाया करती थी। खूब बड़ा तराजू होता, जिस पर मन के हिसाब से कोयला तोला जाता । बोरी में कोयले भर कर लाते और होदी में सँभालकर रख दिया जाता । जरूरत अनुसार उसे निकाला जाता, हथौड़ी से उसके छोटे टुकड़े कि जाते और अंगीठी जलाई जाती।

बड़े बड़े कोयले खत्म होने लग जाते, तो आखिर में बच जाती केरी यानी कोयलों के बहुत ही छोटे- छोटे बारीक टुकड़े, जिन्हें जलाने में प्रयोग तो किया जाता, लेकिन कोयले के रूप में नहीं बल्कि केरी के गोलों के रूप में ।

हमारे घर के एक तरफ गली थी और दूसरी तरफ खूब खुला मैदा,न जिसके चारों ओर घर बने हुए थे । मेरी अम्मा एक पुरानी लोहे की बाल्टी में बारीक कोयलों की केरी में गोबर व तालाब की चिकनी मिट्टी को मिला कर खूब अच्छे से हिलाती । जब घोल  अच्छे से तैयार हो जाता, तो मैदान के बीचों- बीच खुली धूप वाली जगह पर इस घोल के छोटे-छोटे गोले बनाकर जमीन पर सजा दि जाते ।

अम्मा गोले बनाने जाती तो मुझे भी आवाज लगा देती। मैं भरसक कोशिश करती छुपने की; क्योंकि मेरे जी को य सोचकर ही कुछ होने लगता कि गोबर में हाथ डालना पड़ेगा । पर अम्मा तो अम्मा है, वह भला मुझे कैसे आसानी से छोड़ देती । मैं कितनी भी ना-नुकुर करती, वह मेरी बाँह पकड़कर ले जाती ।

शुरू-शुरू में मैं नाक- भों सिकोड़ती; पर धीरे-धीरे मुझे भी आनंद आने लगा । य काम एक आर्टिस्ट की तरह ही किया जाता । कोयले की केरी, चिकनी मिट्टी और गोबर का सही अनुपात, अच्छे से खूब देर तक हिलाते रहना फिर गोल-गोल सुंदर-सुंदर गोले बनाना और सजाना और फिर एक दो दिन तक खूब अच्छी तरह सूख जाने पर एक कनस्तर में धीरे-धीरे सजाकर रखना ताकि वे टूटे-फूटे नहीं,सुरक्षित रहें ।

जब अँगीठी  लाई जाती और उन गोलों को डाला जाता, तो बड़ी खुशी मिलती, छोटे भाई बहनों को कहती, “देखो ये गोले मैंने अम्मा के साथ मिलकर बनाए।”

पहले के लोग कोई भी चीज ज़ाया नहीं होने देते थे । जिन वस्तुओं को हम बेकार समझ फेंकने की सोचते, वे उनका कोई न कोई सदुपयोग सोचकर पुन: प्रयोग में ले आते, भले ही उनके पास कॉलेज की डिग्री नहीं थी; पर अनुभव की डिग्री के आगे कॉलेज की डिग्री बिलकुल फीकी है ।

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Wednesday, April 26, 2023

1316

 

अम्मा  ( मुल्तानी)

अंजू खरबंदा

 

बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा

तुआडी मिठड़ी गालहीं ते तुआडी डांट

तुआडा सांकू समझावणा

ते कडइ कडइ रुस रुस वंजणा

बऊँ याद आन्दे हो तुस्सा अम्मा...

घुँघलुं ते गोभी दे फुल्ल सुखावणा

पितल दे भांडया वेच सब्जी बंणावणा

बाल के कोले दी अंगीठी

साकूँ ठड तू बचावणा

बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा...

माँ दा फर्ज तुस्सा सदा निभाया

अपने बुड्ढे  शरीर दी परवा न कर

सदा साडा साथ निभाया

कीवै भुल सगदे हाँ तुआडा प्यार अम्मा

बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा...

ढेरों-ढेर कपड़े-लत्ते दियाँ पंडा

केरी गोबर दे उपल्या दा गंडा

उत्तो साडी सेवा दा डंडा

कड़ाई तुस्सा उफ़ न कीती अम्मा

बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा....

राम राम लिखणा मैकू सिखा डेओ

प्रांदी कसके गुत्त मैडी बंणा डेओ

अधा कप चा ते पिला डेओ

चपा रोटी मेकु खावा डेओ

हर गाल तुआडी याद हे अम्मा

बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा...

शनील दा सुंणा थैला चाके

तेल दे पीपे कू कपड़ेयाँ दा बक्सा बंणा के

मेरठ दी बस वेच चढ़ वंजणा

कित्ते डी थी गएन भिरावां कुं मिल घिनंणा

हर गाल तुआडी याद हे अम्मा

बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा...

102 साला दी उमर तुसां पायी

वेलेंटाइन डीँह आले  विछोड़ा हाई

तुसी वंज मिले अपणे वेलेंटाइन कुं

साकूँ डे गए मंण भर जुदाई

बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा...

बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा...

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अम्मा ( हिन्दी)

 

बहुत याद आते हो अम्मा

आपकी मीठी बातें और आपकी डाँ

आपका हमें समझाना

और कभी रूठ रूठ जाना

बहुत याद आते हो अम्मा!

शलगम और गोभी के फूल सुखाना

पीतल के बर्तनों में खाना बनाना

जला कर कोयले की अंगीठी

हमें ठंड से बचाना

बहुत याद आते हो अम्मा!

माँ का फर्ज सदैव आपने निभाया

अपने बूढ़े शरीर की परवाह न कर

सदैव हमारा साथ निभाया

कैसे भूल सकते है आपका प्यार अम्मा

बहुत याद आते हो अम्मा!

ढेरों ढेर मैले कपड़े का पंडा

केरी गोबर के उपलों का गंडा

ऊपर से हमारी सेवा का डंडा

कभी आपने उफ़ न को अम्मा

बहुत याद आते हो अम्मा!

राम राम लिखना मुझे सीखा दो

प्रांदी कसके चोटी मेरी बना दो

आधा कप चाय तो पिला दो

चौथाई रोटी मुझे खिला दो

हर बात आपकी याद है अम्मा

बहुत याद आते हो अम्मा!

शनील का सुंदर सा थैला उठाकर

तेल के टिन को कपड़ों का बॉक्स बनाकर

मेरठ की बस पर चढ़ जाऊँ

कितने दिन हो गए भाइयों को मिल आऊँ

हर बात आपकी याद है अम्मा

बहुत याद आते हो अम्मा!

102 बरस की उम्र आपने पाई

वेलेंटाइन वाले दिन बिछोह हुआ

आप तो जा मिले अपने वेलेंटाइन से

हमें दे गए मण भर जुदाई

बहुत याद आते हो अम्मा

बहुत याद आते हो अम्मा!

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पंडा : काफ़ी सारे

केरी : कोयले का चूरा

गंडा : बनाकर रखना

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Friday, March 17, 2023

1303-चाँदी का गुच्छा

 अंजू खरबंदा


 

शादी के उपहारों में

ससुराल के रिश्तेदारों की ओर से

मुझे मिला था एक चाँदी का गुच्छा

जो पड़ा रहा वर्षो तक अलमारी में!

सामान सहेजते हुए

अक्सर ही हाथ में लेकर उसे

निहारती देर तक

तक समझ नहीं थी

कि ये सिर्फ चाबी का छल्ला भर नहीं है

इससे जुड़ा है पूरा परिवार

परिवार से जुड़ा हर सदस्य

हर सदस्य की सौ- सौ परेशानियाँ

उन परेशानियों का हल ढूँढने की जिम्मेदारी!

सासू माँ के जाने के बाद

जब जिम्मेदारियाँ सिर पर पड़ी

निभाना पड़ा सब अकेले ही

हर रिश्ते की सार-सँभाल करते -करते

कितनी ही बार याद करती हूँ

कि ऐसे वक़्त सासू माँ क्या करती

कौन-सा लेती निर्णय

किससे करती सलाह-मशवरा

रिश्तों को निभाते-निभाते

उलझनों से घिरी मैं

महसूस करती हूँ बेहद करीब

स्नेहमयी सासू माँ को

उसके द्वारा लिए गए निर्णयों को

उन निर्णयों पर अडिग रहने के

उनके विराट व्यक्तित्व को!

वे सास होते हुए भी

मेरे अंग- संग माँ-सी रही

माँ होते हुए सास भी बनी रहीं

मुश्किल घड़ियों में

बस याद आती है

 सासू माँ!

और तब चाँदी का भारी गुच्छा

एकाएक लगने लगता है भारहीन!

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(13 मार्च 2023)

Saturday, August 13, 2022

1214

 ये उदासी के बादल छँटते क्यों नहीं

अंजू खरबंदा 

  


रात भर ठीक से सो नहीं पा रही आजकल

घर के छोटे- मोटे काम निबटा 

सुबह से लेटी हूँ शिथिल तन मन से

बाहर सब्जी वाले की आवाज़ पड़ रही है कानों में

सोचती हूँ-

ठूँ जाऊँ ताजी सब्जियाँ खरीद लाऊँ

पति मुझे अक्सर कहते हैं गाय

जो हरी भरी ताजी सब्जियाँ देखते ही खिंची चली जाती है

ये बात मैं सभी को बताती हूँ खूब हँस- हँसकर

पर आज ये बात याद कर

एक हल्की सी मुस्कुराहट भी नहीं आई चेहरे पर! 

आखिर 

ये उदासी के बादल छँटते क्यों नहीं!

कुछ देर बाद गली से आती आवाजें बदलने लगती हैं

नारियल पानी....फल....!

सोचती हूँ उठूँ जाऊँ

कुछ फल ही खरीद लाऊँ

डॉक्टर भी कहते है रोज खाने चाहिए

किसी न किसी रंग के फल

पर लगता है जान ही नहीं शरीर में

ठूँ और जाऊँ बाहर

आखिर

ये उदासी के बादल छँटते क्यों नहीं !

बीच -बीच में आवाजों का शोर रंग बदलता है

कबाड़ी वालाssss

जिप ठीक करवा लोssss

चाकू छुरी तेज करवा लोssss

कुकर रिपेयर करवा लोssss

लेटे- लेटे याद आते है कितने ही काम

पर निर्जीव-सी पड़ी रहती हूँ पलंग पर

बस यही सोचती

आखिर

ये उदासी के बादल छँटते क्यों नहीं!

शाम गहराने लगी है

छत की ओर तकती आँखें दुखने लगी है

सोचती हूँ गुलाब जल डाल लूँ आँखों में

शायद कुछ राहत मिले

हाथ से टटोलकर

पास रखी टेबल से उठाती हूँ गुलाब जल

ड्रापर से बूँद- बूँद कर निकलती है ठंडक 

मूँद लेती हूँ आँखें

चलो कुछ पल तो चैन मिलेगा

आँखों को भी और दिमाग़ को भी

सुकून की चाहत में 

आँखें बंद करते ही

सोचने लगती हूँ फिर वही

ये उदासी के बादल छँटते क्यों नहीं आखिर! 

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Wednesday, May 11, 2022

1207-गुलमोहर

अंजू खरबंदा

एक दिन 


तुम्हारी प्रतीक्षा करते हुए

इकट्ठे कर लिये मैंने

ढेर सारे गुलमोहर,

तुम आई तो मुस्कुराते हुए 

उछाल दिए तुम्हारी ओर

अचानक

फूलों का सुर्ख रंग

तुम्हारे चेहरे पर उतर आया! 

एक दिन

मेरा इंतजार करते हुए

तुमने चुन लिए ढेर सारे गुलमोहर

मेरे आने पर

मेरी ओर उछाले और खिलखिला कर हँस दी

यूँ लगा मानो

सारी सृष्टि खिलखिला उठी हो! 

कल रात


यादों की डायरी खोली

उसमें रखे 

गुलमोहर से मुलाक़ात हुई

फिर सारी रात

सिर्फ अँखियों में कटी!

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Thursday, December 16, 2021

1166

 1-सपना 

भीकम सिंह 

 


ना मैं साहिर
 

ना इमरोज़ 

पर ढूँढता हूँ 

हर रोज 

ख्वाबों में 

ख्यालों में 

अमृता  -

उसका सागर 

जहाँ वह

डूबने की हद

पार कर गई 

 

प्रेम के शब्द 

और

उनकी खुशबू 

मर्यादा के अर्थों को 

देकर

नई जुस्तजू

पुराने-से 

पड़ गए 

रिश्तों में 

नये आयाम 

धर गई 

 

मैं 

आसक्ति को ओढ़े 

सोच रहा था 

तट पर बैठे 

तभी एक

उच्छृंखल-सी लहर

पहने हुए 

दोपहर 

टूट कर गिरी 

और

तर कर गई 

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2-अलसाई सुबह

 अंजू खरबंदा



आज का दिन

कुछ आलस से भरा है

आलस थोड़ा तन का

आलस थोड़ा मन का

जिंदगी के चलते रहेंगे लफड़े ।

 

देह चाहती आज आराम

जी नही करूँ कुछ काम

अलसाई-सी सुबह

पड़ी हूँ निष्प्राण

बिस्तर पर आलस से जकड़े ।

 

आज अच्छा लग रहा है

बिखरा घर

फैले कंबल

सलवटों से भरी चादर

कुरसी पर रखे बिन तह किए कपड़े ।

 

टेबल पर रखा चाय का कप

खुला अखबार

नि:शब्द डायरी का पन्ना

मुस्कुराता हुआ पेन

अंजुम त्याग दिए आज सारे पचड़े 

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