अनिल पाराशर ‘मासूम’
मुझसे ही बस माना करना
सारे जग से रूठा करना
भारी दिल को हल्का करना
सीखो सबको अच्छा करना
नफ़रत जैसी भी कर लेना
प्यार तो मेरे जैसा करना
झूठ नहीं मैं कह पाऊँगा
हाल मेरा मत पूछा करना
उम्र गुजारी ये सुन-सुनकर
ऐसे जीना ऐसा करना
मुझको कसम कभी मत देना
सच मेरा मत झूठ करना
मैं क्या हूँ परछाई हूँ बस
तुम साये का पीछा करना
जब अम्बर से तारा टूटे
मुझको उससे माँगा करना
मेरी याद दिलाएँगे ये
आँसू मत तुम पोंछा करना
कभी देखना मेरे सपने
कभी रात भर जागा करनी
क्या ‘मासूम’ में ख़म देखा है
अच्छे को अच्छा क्या करना
( तेरे जाने के बाद काव्य-संग्रह से)
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